top of page
Search

पुषिजीव का जीवन केवल कर्माधीन नहीं 'कृष्णाधीन" है।

इतना विश्वास वैष्णव को रखना चाहिए कि भगवान कभी भी हमे कर्म के आधीन नहीं रखते । पुषिजीव का जीवन केवल कर्माधीन नहीं 'कृष्णाधीन" है।


कई बार हम कहते हैं कि कर्मों का फल है लेकिन हम पुष्टि जीव हैं , "श्रीठाकुर जी " दुख सुख के झूले में हमें नहीं झुलाते । "श्री कृष्ण" हम जीवों के सुख दुख के पीछे बराबर दृष्टि रखते हैं।


ब्रह्मसम्बन्ध के द्वारा समर्पण कर दिया और उसका नियंत्रण स्वयं "श्री कृष्ण" करते हैं। वैष्णव अपने जीवन में संतोष रखते हुए दुख को कम भी कर सकते हैं और सुख को बढ़ा भी सकते हैं । इतना विश्वास रखे कि मेरे ऊपर साक्षात " श्री वल्लभ और श्रीजीबाबा" विराज रहे हैं।


 
 
 

Kommentit


© 2020 by Pushti Saaj Shringar.

bottom of page