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व्रज – आश्विन कृष्ण द्वितीया(प्रथम)

व्रज – आश्विन कृष्ण द्वितीया(प्रथम)

Wednesday, 22 September 2021


फ़िरोज़ी मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर दुमाला और कल्गा (भीमसेनी क़तरा) के श्रृंगार


जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.


ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को फ़िरोज़ी मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर दुमाला और कल्गा भीमसेनी क़तरा के श्रृंगार धराया जायेगा.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


यहां अब काहेको दान देख्यो न सुन्यो कहुं कान ।

एैसे ओट पाऊठि आओ मोहन जु दूध दहीं लीयो चाहे मेरे जान ।।१।।

खिरक दुहाय गोरस लिये जात अपने भवन तापर एैसी ठानी आनकी आन ।

गोविंद प्रभुको कहेत व्रजसुंदरी चलो रानी जसोदा आगे नातर सुधे देहो जान ।।२।।


साज – श्रीजी में आज फ़िरोज़ी रंग की मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज फ़िरोज़ी रंग की मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के होते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटनों तक) श्रृंगार धराया जाता है. फ़ीरोज़ा के आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर पिले रंग के दुमाला के ऊपर सिरपैंच, कल्गा (भीमसेनी कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.

आज कमल एवं कली की मालाजी धरायी जाती हैं.

श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.

पट फ़िरोज़ी गोटी बाघ-बकरी की आती है.


 
 
 

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