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व्रज – आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी

व्रज – आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी

Friday, 16 June 2023

श्वेत मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर स्वेत कुल्हे पर स्वेत घेरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, शृंगार के रूप में आज श्रीजी को श्वेत मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर स्वेत कुल्हे पर स्वेत घेरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

पनिया न जेहोरी आली नंदनंदन मेरी मटुकी झटकी के पटकी l

ठीक दुपहरी में अटकी कुंजनमे कोऊ न जाने मेरे घटकी ll 1 ll

कहारी करो कछु बस नहीं मेरो नागर नट सों अटकी l

‘नंददास’ प्रभु की छबि निरखत सुधि न रही पनघट की ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में स्वेत मलमल में नृत्य करते मोर की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को स्वेत मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. पिछोड़ा रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर स्वेत कुल्हे के ऊपर स्वेत घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.


पट ऊष्णकाल का एवं गोटी बड़ी हक़ीक की आती हैं.

 
 
 

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