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व्रज – आषाढ़ कृष्ण द्वादशी

व्रज – आषाढ़ कृष्ण द्वादशी

Wednesday, 03 July 2024


शरबती मलमल का स्याम छापा का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार


राजभोग दर्शन


कीर्तन – (राग : सारंग)


पनिया न जैहोरी आली नंदनंदन मेरी मटुकी झटकिके पटकी

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ठीक दुपहरीमें अटकी कुंजनमें कोऊ न जाने मेरे घटकी ll 1 ll

कहारी करो कछु बस नहि मेरो नागर नटसों अटकी l

‘नंददास’ प्रभुकी छबि निरखत सुधि न रही पनघटकी ll 2 ll


साज – श्रीजी में आज सफेद जाली (Net) के वस्त्र पर अपनी गर्दन ऊँची कर कूकते मयूरों की सज्जा वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को शरबती मलमल का स्याम छापा का रूपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित आड़बंद धराया जाता है.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर शरबती रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट ऊष्णकाल का व गोटी हक़ीक की छोटी आती है.

 
 
 

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