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व्रज - आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा

व्रज - आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा

Sunday, 21 July 2024


पिय बीन लागत बूंद कटारी ।

छिन भीतर छिन बाहिर

आवत छिन छिन चढत अटारी ।।१।।

दादुर मोर बपैया बोले कोयल कुंजे कारि ।

सूरदास प्रभु तिहारे मिलन बीन दुख व्याप्यो मोहे भारी ।।२।।


कचौरी पूनम (गुरु पूर्णिमा)


विशेष - आज आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा है जिसे हम गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ी पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा और पुष्टिमार्गीय वैष्णव मंदिरों में कचौरी पूनम के नाम से भी जानते हैं.


आज पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय के अलावा अन्य हिन्दू सम्प्रदायों के लोग अपने गुरु का दर्शन एवं पूजन करते हैं. पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय में गुरु का पूजन पवित्रा एकादशी के दूसरे दिन अर्थात श्रावण शुक्ल द्वादशी को किया जाता है.


आज वेदव्यासजी का जन्मदिवस है और वेदव्यासजी भगवान विष्णु के अवतार हैं अतः पुष्टिमार्ग में देहरी-वन्दनमाल का क्रम होता है.


आज से ऊष्णकाल विदा हो जाता है. प्रभु सेवा में ठाड़े वस्त्र आरम्भ हो जाते हैं. चंदन बरनी पर श्वेत के स्थान पर लाल वस्त्र चढ़ाया जाता है.

चंदवा एवं टेरा आज से रंगीन बदले जाते हैं.


आज श्रीजी में नियम से मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है.

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण दशमी तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है.

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है.


भोग विशेष - श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से चारोली (चिरोंजी) के लाटा के लड्डू और दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

चारोली (चिरोंजी) के लाटा के लड्डू वर्ष भर में श्रीजी को एक बार ही गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आरोगाये जाते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.


आज श्री नवनीतप्रियाजी को विशेष रूप से पलना के भोग में जोटापूड़ी (पतली पूड़ी) के स्थान पर एवं संध्या-आरती में भी फीके के स्थान पर उड़द की दाल की कचौरी अरोगायी जाती है.

अधिकतर पुष्टिमार्गीय मंदिरों में आज के दिन ठाकुर जी को कचौरी अरोगायी जाती है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : मल्हार)


अरी इन मोरन की भांत देख नाचत गोपाला ।

मिलवत गति भेदनीके मोहन नटशाला ।।१।।

गरजत धन मंदमद दामिनी दरशावे ।

रमक झमक बुंद परे राग मल्हार गावे ।।२।।

चातक पिक सधन कुंज वारवार कूजे ।

वृंदावन कुसुम लता चरण कमल पूजे ।।३।।

सुरनर मुनि कामधेनु कौतुक सब आवे ।

वारफेर भक्ति उचित परमानंद पावे ।।४।।


साज – श्रीजी में आज वर्षाऋतु के आगमन पर चमकती बिजली, वन खड़े में ग्वाल-बाल, गायें एवं हिरणों के चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज लाल चूंदड़ी का सूथन, छोटी काछनी लाल एकदानी चूंदड़ी की रूपहरी किनारी की एवं बड़ी काछनी श्याम रंग की सुनहरी किनारी तथा लाल रंग की एकदानी चूंदड़ी का रास-पटका धराया जाता है. सूथन तथा रास-पटका के ऊपर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी शोभित है. ठाड़े वस्त्र सफेद डोरिया के धराये जाते हैं. आज से प्रतिदिन ठाड़े वस्त्र धराये जाएंगे.


श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्वआभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर मोती का सुन्दर मुकुट तथा बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. हास,त्रवल नहीं धराए जाते हे बध्धी धरायी जाती हैं.

नीचे पदक,ऊपर हरी मणी की माला धरायी जाती हैं.

मोती की शिखा (चोटी) और श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

राजभोग में मोती का चोखटा आता हैं.

पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में कमलछड़ी जड़ाव मोती के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट श्वेत रंग का सुनहरी किनारी का और गोटी मोती की धरायी जाती हैं.


आरसी श्रृंगार में एक झाड़ की एवं राजभोग में सोना की दाँडी की आती है.

 
 
 

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