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व्रज - कार्तिक शुक्ल तृतीया

व्रज - कार्तिक शुक्ल तृतीया

Sunday, 07 November 2021


आसमानी सलीदार ज़री का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और जमाव के क़तरा के श्रृंगार


जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.


ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को आसमानी सलीदार ज़री का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव के क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.


ये इन्द्रमान भंग के दिन है अतः कार्तिक शुक्ल तृतीया से अक्षय नवमी तक इन्द्रमान भंग के कीर्तन गाये जाते हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : धनाश्री)


माधोजु राखो अपनी ओट ।

वे देखो गोवर्धन ऊपर उठे है मेघ के कोट ।।१।।

तुम जो शक्रकी पूजा मेटी वेर कियो उन मोट l

नाहिन नाथ महातम जान्यो भयो है खरे टे खोट ।।२।।

सात घौस जल वर्ष सिरानो अचयो एक ही घोट l

लियो उठाय गरुवो गिरी करपर कीनो निपट निघोट ।।३।।

गिरिधार्यो तृणावर्त मार्यो जियो नंदको ढोट l

‘परमानन्द’ प्रभु इंद्र खिस्यानो मुकुट चरणतर लोट ।।४।।


साज – श्रीजी में आज आसमानी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को आसमानी सलीदार ज़री का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर आसमानी ज़री की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

पीले एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.

पट आसमानी एवं गोटी चाँदी की आती हैं.


संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक पर धराये श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.


 
 
 

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