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व्रज - कार्तिक शुक्ल तृतीया

व्रज - कार्तिक शुक्ल तृतीया

Monday, 04 November 2024


फ़िरोज़ी ज़री के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ी छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा के शृंगार


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : धनाश्री)


माधोजु राखो अपनी ओट ।

वे देखो गोवर्धन ऊपर उठे है मेघ के कोट ।।१।।

तुम जो शक्रकी पूजा मेटी वेर कियो उन मोट l

नाहिन नाथ महातम जान्यो भयो है खरे टे खोट ।।२।।

सात घौस जल वर्ष सिरानो अचयो एक ही घोट l

लियो उठाय गरुवो गिरी करपर कीनो निपट निघोट ।।३।।

गिरिधार्यो तृणावर्त मार्यो जियो नंदको ढोट l

‘परमानन्द’ प्रभु इंद्र खिस्यानो मुकुट चरणतर लोट ।।४।।


साज – आज श्रीजी में फ़िरोज़ी रंग की पिछवाई धरायी जाती है गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है


वस्त्र – श्रीजी को आज फ़िरोज़ी ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को छेड़ान का (हल्का) श्रृंगार धराया है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

पीले एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.


पट फ़िरोज़ी एवं गोटी मीना की धरायी जाती हैं.

 
 
 

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