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व्रज - चैत्र शुक्ल त्रयोदशी

व्रज - चैत्र शुक्ल त्रयोदशी

Thursday, 10 April 2025


चौफ़ुली चुंदड़ी के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर दोहरा क़तरा के शृंगार


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग

कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll

मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान

जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll

प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन

अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll

वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल

कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में बाल भाव के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर श्वेत मखमल मढ़ी हुई होती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को चौफ़ुली चुंदड़ी का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र फ़िरोज़ा रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर चुंदड़ी की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, दोहरा क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट लाल एवं गोटी मीना की आती है.



संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

 
 
 

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