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व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्थी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्थी

Monday, 27 May 2024

गुलाबी मलमल का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर चंद्रिका के शृंगार, उत्थापन दर्शन पश्चात मोगरे की कली के श्रृंगार

संध्या-आरती के उपरांत ऊष्णकाल का प्रथम शीतल जल स्नान

राजभोग दर्शन

कीर्तन – (राग : सारंग)

शीतल उसीर गृह छिरक्यों गुलाबनीर

परिमल पाटीर घनसार बरसत हैं ।

सेज सजी पत्रणकी अतरसो तर कीनी

अगरजा अनूप अंग मोद दरसत हैं ॥१॥

बीजना बियाँर सीरी छूटत फुहारें नीके

मानो घन नहैनि नहैनि फ़ूही बरसत हैं ।

चतुर बिहारी प्यारी रस सों विलास करे

जेठमास हेमंत ऋतु सरस दरसत हैं ॥२॥

साज – आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल रूपहली ज़री की किनारी वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का रूपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित आड़बंद धराया जाता है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

मोती के आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट व गोटी ऊष्णकाल के आते है.

ऊष्णकाल का प्रथम शीतल जल स्नान

आज श्रीजी में संध्या-आरती के उपरांत ऊष्णकाल का प्रथम शीतल जल स्नान होगा. ऊष्णकाल के ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में श्रीजी में नियम के चार अभ्यंग स्नान और तीन शीतल जल स्नान होते हैं. यह सातो स्नान ऊष्ण से श्रमित प्रभु के सुखार्थ होते हैं.

अभ्यंग स्नान प्रातः मंगला उपरांत और शीतल जल स्नान संध्या-आरती के उपरांत होते हैं.

अभ्यंग स्नान में प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है जबकि शीतल स्नान में प्रभु को बरास और गुलाब जल मिश्रित सुगन्धित शीतल जल से स्नान कराया जाता है.


जिस दिन अभ्यंग और शीतल स्नान हो उस दिन शयनभोग की सखड़ी में विशेष रूप से विविध प्रकार के मीठा-रोटी, दहीभात, घुला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाते हैं.

 
 
 

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