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व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी

Tuesday, 10 June 2025


यमुना जल घट भर चलि चंद्रावली नारि ।

मारग में खेलत मिले घनश्याम मुरारि ।।१।।

नयनन सों नयना मिले मन हर लियो लुभाय ।

मोहन मूरति मन बसी पग धर्यो न जाय ।।२।।


स्नान को जल भरवे को श्रृंगार


विशेष – आज प्रभु को नियम का गुलाबी आड़बंद व श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग धरायी जाती है. ज्येष्ठाभिषेक के लिए जल भरकर आती गोपियों की पिछवाई धरायी जाती हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


दुपहरी झनक भई तामें आये पिय मेरे मैं ऊठ कीनो आदर l

आँखे भर ले गई तनकी तपत सब ठौर ठौर बूंदन चमक ll 1 ll

रोम रोम सुख संतोष भयो गयो अनंग तनमें न रह्यो ननक l

मोहें मिल्यो अब ‘धोंधी’ के प्रभु मिट गई विरहकी जनक ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में श्वेत जाली (Net) पर जल भरकर लाती गोपियों के सुन्दर काम (Work) से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.


वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी रंग की मलमल का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित आड़बंद धराया जाता है.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर गुलाबी मलमल की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, श्वेत पंख के कतरा (खंडेला) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. तुलसी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ ऐसी ही दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सोने-चांदी (गंगा-जमुना) के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट-गोटी उष्णकाल के आते हैं.


स्नान का जल भरने जाना एवं स्नान के जल का अधिवासन


आज प्रातः श्रृंगार उपरांत श्रीजी को ग्वाल भोग धरकर चिरंजीवी श्री विशालबावा, श्रीजी व श्रीनवनीतप्रियाजी के मुखियाजी, भीतरिया व अन्य सेवकों, वैष्णवजनों के साथ श्रीजी मन्दिर के दक्षिणी भाग में मोतीमहल के नीचे स्थित भीतरली बावड़ी पर ज्येष्ठाभिषेक के लिए जल लेने पधारेंगे.


कुछ वर्ष पूर्व तक ज्येष्ठाभिषेक के लिए जल मन्दिर की पश्चिम दिशा में कुछ दूरी पर गणगौर घाट में स्थित चूवा वाली बावड़ियों से लाया जाता था परन्तु अब वहां का जल प्रभुसेवा में प्रयुक्त होने योग्य न होने के कारण पिछले तीन वर्षों से भीतरली बावड़ी से ही जल लिया जाता है.


स्वर्ण व रजत पात्रों में जल भर कर लाया जायेगा और शयन के समय के इसका अधिवासन किया जायेगा.


पुष्टिमार्ग में सर्व वस्तु भावात्मक एवं स्वरूपात्मक होने से अधिवासन अर्थात जल की गागर का चंदन आदि से पूजन कर भोग धरकर उसमें देवत्व स्थापित कर बालक की रक्षा हेतु अधिवासन किया जाता है.

अधिवासन में जल की गागर भरकर उसमें कदम्ब, कमल, गुलाब, जूही, रायबेली, मोगरा की कली, तुलसी, निवारा की कली आदि आठ प्रकार के पुष्पों चंदन, केशर, बरास, गुलाबजल, यमुनाजल, आदि पधराये जाते हैं.

अधिवासन के समय यह संकल्प किया जाता है.

“श्री भगवतः पुरुषोत्तमस्य श्च: स्नानयात्रोत्सवार्थं ज्येष्ठाभिषेकार्थं जलाधिवासनं अहं करिष्ये l”


कल ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल मंगला समय प्रभु को इस जल के 108 धड़ों (स्वर्ण पात्र) से प्रभु का ज्येष्ठाभिषेक कराया जायेगा.


सवा लाख आमों का भोग लगाया जायेगा.

 
 
 

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