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व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल नवमी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल नवमी

Wednesday, 04 June 2025


बसरा के मोतियों से गूंथा हुआ आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और मोती के दोहरा क़तरा के श्रृंगार, ऊष्णकाल का तृतीय अभ्यंग


विशेष - आज श्रीजी में ऊष्णकाल का तृतीय अभ्यंग होगा. ऊष्णकाल के ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में श्रीजी में नियम के चार अभ्यंग स्नान और तीन शीतल जल स्नान होते हैं. यह सातो स्नान ऊष्ण से श्रमित प्रभु के सुखार्थ होते हैं.


अभ्यंग स्नान प्रातः मंगला उपरांत और शीतल जल स्नान संध्या-आरती के उपरांत होते हैं.


अभ्यंग स्नान में प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है जबकि शीतल स्नान में प्रभु को बरास और गुलाब जल मिश्रित सुगन्धित शीतल जल से स्नान कराया जाता है.


जिस दिन अभ्यंग हो उस दिन अमुमन चितराम (चित्रांकन) की कमल के फूल वाली पिछवाई धराई जाती है एवं गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को सतुवा के लड्डू अरोगाये जाते हैं.


जिस दिन अभ्यंग और शीतल स्नान हो उस दिन शयनभोग की सखड़ी में विशेष रूप से विविध प्रकार के मीठा-रोटी, दहीभात, घुला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाते हैं.


शृंगार दर्शन –


कीर्तन – (राग : बिलावल)


देखे री हरि नंगमनंगा l

जलसुत भूषन अंग विराजत बसन हीन छबि उठि तरंगा ll 1 ll

अंग अंग प्रति अमित माधुरी निरखि लज्जित रति कोटि अनंगा l

किलकत दधिसुत मुख लेपन करि ‘सूर’ हसत ब्रज युवतिन संगा ll 2 ll


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


सूर आयो सिर पर छाया आई पायनतर

पंथी सब झूक रहे देख छांह गहरी l

धंधीजन धंध छांड रहेरी धूपन के लिये

पशु-पंछी जीव जंतु चिरिया चूप रही री ll 1 ll

व्रज के सुकुमार लोग दे दे किंवार सोये

उपवन की ब्यार तामें सुख क्यों न लहेरी l

‘सूर’ अलबेली चल काहेको डरात है

महा की मधरात जैसी जेठ की दुपहरी ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग की (Net) जाली की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को बसरा के मोतियों से गूंथा हुआ आड़बंद धराया जाता है.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

सर्व आभरण मोती के धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर बसरा के मोतियों की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोती का दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो मालाएँ हमेल की भांति धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी,मोती के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.


पट ऊष्णकाल का व गोटी हकीक की आती है.

 
 
 

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