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व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी

Sunday, 31 May 2025


श्रीजी में नियम का नाव का मनोरथ


बैठै घनस्याम सुंदर खेवत है नाव।

आज सखी मोहन संग , खेलवे को दाव।।१।।

यमुना गम्भीर नीर, अति तरंग लोले।

गोपिन प्रति कहन लागे, मीठे मृदु बोले।। २।।

पथिक हम खेवट तुम , लीजिये उतराई।

बीच धार मांझ रोकी , मिष ही मिष डुलाई ।। ३।।

डरपत हों स्याम सुंदर, राखिये पद पास।

याहि मिष मिल्यो चाहे, परमानंद दास।।। ४।।


विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री ने उदयपुर के तत्कालीन महाराणा भूपालसिंहजी व उदयपुर की महारानीजी की विनती पर विक्रम संवत 2005 में ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को नाव का मनोरथ किया था.

डोलतिबारी में जल भरकर नाव में प्रभु श्री मदनमोहनजी को विराजित कर सुन्दर मनोरथ हुआ था. तब से यह मनोरथ उनके द्वारा जमा करायी गयी धनराशी के ब्याज से प्रतिवर्ष ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को होता है.


सेवाक्रम- दिन में दो समय राजभोग एवं संध्या आरती की आरती थाली में की जाती है.


आज श्रीजी को नियम की बिना किनारी की गुलाबी परदनी और श्रीमस्तक पर गोल-चंद्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.


द्वितीय गृह में आज श्री गोविन्दरायजी (द्वितीय) का प्राकट्योत्सव है.

आज प्राचीन परंपरानुसार श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी को धराये जाने वाले वस्त्र द्वितीय गृह प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध होकर पधारते हैं.

श्री नवनीतप्रियाजी के लिए ओढ़नी भी द्वितीय गृह से पधारती है.

वस्त्रों के संग बूंदी के लड्डुओं की छाब भी वहां से आती है.


वर्ष में लगभग 16 बार श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के वस्त्र द्वितीय पीठ से पधारते हैं.


आज श्रीजी को नियम की बिना किनारी की गुलाबी परधनी और श्रीमस्तक पर गोल-चंद्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. उदयपुर के गणगौर घाट के सुन्दर चित्रांकन की सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


करत जल केलि पिय प्यारी भुज मेलि l

छुटत फूहारे भारी उज्जवल हो दस बारे अत्तरही सुगंधि रेलि ll 1 ll

निरख व्रजनारी कहा कहौ छबि वारी सखा सहत सहेलि l

राधा-गोविंद जल मध्य क्रीड़त ख्याल वृंदावन सखी सब टहेलि ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में उदयपुर के प्रसिद्द गणगौर-घाट, राजमहल, नौका-विहार, घूमर नृत्य करती गोपियों, श्री ठाकुर जी, श्री बलदेव जी एवं श्री नंद-यशोदा जी के सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को बिना किनारी की गुलाबी मलमल की परदनी धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण हीरा के धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर गुलाबी मलमल की गोलपाग के ऊपर सिरपैंच, मोती की घुमावदार चमकनी गोल-चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में एक हार व पंचलड़ा धराया जाता है.

हरे एवं कमल के पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है वहीँ श्वेत पुष्पों एवं कमल की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.


पट उष्णकाल का व गोटी हकीक की आती है.

 
 
 

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