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व्रज – पौष शुक्ल एकादशी

व्रज – पौष शुक्ल एकादशी

Sunday, 21 January 2024

रसिकनी रसमे रहत गढी ।

कनकवेली व्रुषभानुं नंदिनी श्याम तमाल चढी ।।१।।

बिहरत श्री गिरिधरनलाल संग कोने पाठ पढी ।

कुंभनदास प्रभु गोवर्धनधर रति-रस केलि बढी ।।२।।

पुत्रदा एकादशी, श्रीजी में रस मंडान

त्रिकुटी के बागा को श्रृंगार

विशेष - आज पुत्रदा एकादशी है. आज श्रीजी में शाकघर का रस-मंडान होता है. रस-मंडान के दिन श्रीजी को संध्या-आरती में शाकघर में सिद्ध 108 स्वर्ण व रजत के पात्रों में गन्ने का रस अरोगाया जाता है.

इस रस की विशेषता है कि इस रस में विशेष रूप से कस्तूरी भी मिलायी जाती है.

आज प्रभु को संध्या-आरती दर्शन में चून (गेहूं के आटे) का सीरा का डबरा भी अरोगाया जाता है जिसमें गन्ने का रस मिश्रित होता है.

प्रभु के समक्ष उपरोक्त ‘रसिकनी रसमें रहत गढ़ी’ सुन्दर कीर्तन गाया जाता है.

राजभोग दर्शन –

साज – आज श्रीजी में शीतकाल की सुन्दर कलात्मक पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को अमरसी रंग के साटन के तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार (त्रिकुटी के) वागा धराये जाते हैं. पतंगी तथा सुनहरी ज़री का गाती का त्रिखुना पटका धराया जाता है. सुनहरी ज़री के मोजाजी एवं ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर पन्ना का त्रिखुना टीपारा का साज़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

आज चोटीजी नहीं आती हैं.

श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. गुलाब के पुष्पों की एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट अमरसी एवं गोटी बाघ बकरी की आती हैं.


संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक टिपारा का साज बड़ा कर के छज्जेदार पाग धरा कर रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

 
 
 

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