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व्रज – पौष शुक्ल सप्तमी

व्रज – पौष शुक्ल सप्तमी

Wednesday, 17 January 2024

हरे छिट के साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर टीपारा का साज के शृंगार

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : तोड़ी)

सोने की मटुकिया, जराव की इंडुरिया, श्याम प्रेम भरी भूल गयी गोरस।।

प्रीतम को नाम ले ले, कहेत लेओरी कोऊ, ब्रजमें डोलत बोलत है चहुँओ रस || १||

चलो श्याम सुन्दर एकांत दधि खाइए, न जात तजे वाको रस।।

“तानसेन" के प्रभु हौंजू कहतहों, साँझ भई रटत निकसी हुती भोरस।। २ ।।

साज – आज श्रीजी में हरे रंग की साटन की शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है जो कि रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को हरे छिट के साटन के सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.

श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (मध्य में चन्द्रिका, दोनों ओर दोहरा कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सफेद एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी व एक सोने के धराये जाते हैं.


पट हरा गोटी बाघ बकरी की धरायी जाती हैं.

 
 
 

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