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व्रज - भाद्रपद कृष्ण पंचमी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण पंचमी

Saturday, 11 September 2021


श्री चन्द्रावलीजी का उत्सव, नील-पीत के पगा, पिछोड़ा का श्रृंगार


विशेष – आज राधिकाजी की परमसखी श्री चन्द्रावलीजी का उत्सव है. आज से राधाष्टमी की चार दिवस की झांझ (एक प्रकार का वाध्य) की बधाई बैठती है.


श्री विट्ठलनाथजी (गुसांईजी) श्री चन्द्रावलीजी का प्राकट्य स्वरुप है. श्री चन्द्रावलीजी का उत्सव स्वामिनीजी के उत्सव की भांति मनाया जाता है.


आपका स्वरुप गौरवर्ण है अतः आज हाथीदांत के खिलौने और श्वेत वस्तुएं श्रीजी के सम्मुख श्री चन्द्रावलीजी के भाव से धरी जाती है. ( विस्तुत जानकारी अन्य आलेख में)


इसी भाव से श्रीजी को आज विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं.


आज श्रीजी को नील-पीत के वस्त्र एवं ग्वाल-पगा का श्रृंगार धराया जाता है. वर्षभर में यह श्रृंगार आज ही धराया जाता है जिसमें नीले (मेघश्याम) रंग के हांशिया वाले पीले रंग के पगा, वस्त्र और पिछवाई धरायी जाती है. पगा पर नीले रंग की बिंदी होती है.


निम्नलिखित कीर्तन के आधार पर आज का यह श्रृंगार धराया जाता है.


किशोरीदास छाप का यह कीर्तन आज श्रीजी में गाया जाता है.


हो व्रज बासन को मगा l

वल्लभराज गोप कुल मंडन ईन दे घर को जगा ll 1 ll

नंदराय ऐक दियो पिछोरा तामे कनक तगा l

श्री वृषभान दिये कर टोडर हीरा जरत नगा ll 2 ll

किरत दई कुंवरि की झगुली जसुमत सुत को जगा l

‘किशोरीदास’ को पहरायो नील पीत को पगा ll 3 ll


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


आज सखी सुखमा कन्या जाई l

भादो सुदि पांचे शुभ लग्न चंद्रभान गृह आई ll 1 ll

नामकरनको गर्ग पराशर नारदादि सब आये l

चंद्रावली नाम सुख सागर कोटिक चंद लजाये ll 2 ll

सुनि वृषभान नंद मिलि आये कीरति जसोदा आई l

मंगल कलश सुवासिन सिर धारी मोतिन चौक पुराई ll 3 ll

देत दान और धरत साथिये गोपी सब हरखानी l

निगम सार जोरी गिरिधरकी व्रजपति के मनमानी ll 4 ll


साज – आज श्रीजी में पीले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस और आसमानी हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज पीली मलमल का आसमानी हांशिये वाला पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक के आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी व वैजयन्ती माला धरायी जाती है.


श्रीमस्तक पर पीले रंग का आसमानी किनारी और टिपकियों वाला ग्वालपाग (पगा) धराया जाता है जिसके ऊपर चमकना टिपारा का साज - मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में जड़ाव के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में टोडर धराया जाता हैं.

श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी और वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.

पट पीला व गोटी बाघ बकरी की आती है.


शयन में कीर्तन - (राग : कान्हरो)


प्रकट भई शोभा त्रिभुवन की श्री वृषभान गोपके आई l

अद्भुत रूप देखि व्रजवनिता रीझी रीझी के लेत बलाई ll 1 ll

नहीं कमला नहीं शची रति रंभा उपमा उर न समाई l

जातें प्रकट भये व्रजभूषन धन्य पिता धनि माई ll 2 ll

युग युग राज करौ दोऊ जन इत तुम उत नंदराई l

उनके मदनमोहन इत राधा ‘सूरदास’ बलिजाई ll 3 ll


 
 
 

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