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व्रज – भाद्रपद शुक्ल द्वादशी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल द्वादशी

Saturday, 18 September 2021


अहो बलि द्वारे ठाडे वामन ।

चार्यो वेद पढत मुखपाठी अति सुमंद स्वर गावन ।।१।।

बानी सुनी बलि बुझन आये अहो देव कह्यो आवन ।

तीन पेंड वसुधा हम मागे परनकुटि एक छावन ।।२।।

अहो अहो विप्र कहा तुम माग्यो अनेक रत्न देहु गामन ।

परमानंद प्रभु चरन बढायो लाग्यो पीठन पावन ।।३।।


(वामन लीला मे प्रभु के वचन हैं कि मैं जिस पर कृपा किया करता हू उसका धन छीन लिया करता हूं. मनुष्ययोनि मे जन्म मिलने पर यदि कुलीनता,कर्म, अवस्था,रूप विद्या एश्वर्य ओर धन का घमंड न हो जाय तब समझना चाहिये कि मेरी बड़ी कृपा है)


वामन द्वादशी के शृंगार


विशेष - विगत कल वामन द्वादशी का पर्व था लेकिन दान एकादशी होने के कारण शृंगार आज धराया जायेगा.


भाद्रपद कृष्ण पंचमी को केसर से रंगे गये वस्त्र जन्माष्टमी, राधाष्टमी और वामन द्वादशी के उत्सवों पर श्रीजी को धराये जाते हैं.

आज श्रीजी को नियम का केसरी धोती-पटका का श्रृंगार धराया जाता है. काफी अद्भुत बात है कि आज यह श्रृंगार धराया प्रभु का स्वरुप अन्य दिनों की तुलना में कुछ छोटा प्रतीत होता है अर्थात दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि श्रीजी आज वामन रूप में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


प्रगटे श्रीवामन अवतार l

निरख अदित मुख करत प्रशंसा जगजीवन आधार ll 1 ll

तनघनश्याम पीतपट राजत शोभित है भुज चार l

कुंडल मुकुट कंठ कौस्तुभ मणि उर भृगुरेखा सार ll 2 ll

देखि वदन आनंदित सुर मुनि जय जय करे निगम उच्चार l

‘गोविंद’प्रभु बलिवामन व्है कैं ठाड़े बलि के द्वार ll 3 ll


साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली (जन्माष्टमी वाली) पिछवाई धरायी जाती है.गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं गाती का उपरना धराया जाता है. प्रभु के यश विस्तार भाव से ठाड़े वस्त्र सफेद धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटनों तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता वाले आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाति हैं.रंग-बिरंगी पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो एक सवर्ण का) वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट उत्सव का एवं गोटी दान की आती हैं.

आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.


 
 
 

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