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व्रज - भाद्रपद शुक्ल षष्ठी

व्रज - भाद्रपद शुक्ल षष्ठी

Monday, 09 September 2024


सभी वैष्णवजन को श्रीललिताजी के उत्सव, नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी (१७४४) का प्राकट्योत्सव की ख़ूब ख़ूब बधाई

बलदेव छठ, श्रीललिताजी का उत्सव, नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी (१७४४) का प्राकट्योत्सव


श्रीजी प्रभु को नियम के पंचरंगी लहरिया के वस्त्र व श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर मोरपंख की सादी चंद्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.


गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.


राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.


भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तला बीज चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


आज सखी शारदा कन्या जाई l

भादों सुदि षष्ठी है शुभ नक्षत्र वर आई ll 1 ll

भेरि मृदंग दुंदुभी बाजत नंदकुंवर सुखदाई l

गोपीजन प्रफुल्लित भई गावत मंगल गीत बधाई ll 2 ll

नामकरनको गर्ग पराशर गौतम वेद पढ़ाई l

दीने दान पिता विशोकजु नारद बीन बजाई ll 3 ll

आभूषण पाटंबर बहुविध गो भू दान कराई l

नंदराय वृषभानराय मीली विशोक ही देत बधाई ll 4 ll

सकल सुवासिनी धरत साथिये कीरति पंजरी धाई l

'व्रजपति' की स्वामिनी यह प्रगटी ललिता नाम धराई ll 5 ll


साज – श्रीजी में आज पंचरंगी लहरिया की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद मखमल मढ़ी हुई है.


वस्त्र – श्रीजी को आज पंचरंगी लहरिया का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत डोरिया के होते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

नीचे चार पान घाट की जुगावली, ऊपर मोतियों की माला आती है. त्रवल नहीं धराया जाता वहीं हीरा की बग्घी धरायी जाती है.

श्रीमस्तक पर पंचरंगी लहरिया की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, विट्ठलेशरायजी के वेणु, वेत्र (व एक सोने के) धराये जाते हैं.

पट लाल, गोटी स्याम मीना की आती हैं.


आरसी शृंगार में पिले खंड की व राजभोग में सोना की डाँडी की आती है.

 
 
 

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