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व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी

Tuesday, 14 December 2021


फ़िरोज़ी साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर लसनिया का जड़ाऊ कूल्हे पर पगा का पान व टीपारा का साज के शृंगार


मोक्षदा एकादशी (गीता जयंती)


ब्रह्म पुराण के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है. द्वापर युग में प्रभु श्रीकृष्ण ने आज के ही दिन अर्जुन को भगवद् गीता का उपदेश दिया था, इसीलिए आज का दिन गीता जयंती के नाम से भी प्रसिद्ध है.


आज की एकादशी मोह का क्षय करनेवाली है, इस कारण इसका नाम मोक्षदा रखा गया है, इसीलिए प्रभु श्रीकृष्ण मार्गशीर्ष में आने वाली इस मोक्षदा एकादशी के कारण ही कहते हैं "मैं महीनों में मार्गशीर्ष का महीना हूं" इसके पीछे मूल भाव यह है कि मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश हुआ था.


मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी से मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा तक पूर्णिमा को होने वाले घर (नियम) के छप्पनभोग उत्सव के लिए विशेष सामग्रियां सिद्ध की जाती हैं जिन्हें प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगाया जाता है.

इसी श्रृंखला में श्रीजी को आज तवापूड़ी (इलायची, मावे व तुअर की दाल के मीठे मसाले से भरी पूरनपोली जैसी सामग्री जिसमें आंशिक रूप में कस्तूरी भी मिलायी जाती है) का भोग अरोगाया जाता है. यह सामग्री छप्पनभोग के दिवस भी अरोगायी जाएगी.


आज का श्रृंगार ऐच्छिक है परन्तु किरीट, खोंप, सेहरा अथवा टिपारा धराया जाता है. रुमाल एवं गाती का पटका भी धराया जाता है. श्रृंगार जड़ाऊ का धराया जाता है.


आज श्रीजी को फ़िरोज़ी साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर लसनिया का जड़ाऊ कूल्हे पगा का साज धराया जाएगा.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : आसावरी)


देखो अद्भुत अविगतकी गति कैसो रूप धर्यो है हो ।

तीन लोक जाके उदर बसत है सो सुप के कोने पर्यो है ।।१।।

नारदादिक ब्रह्मादिक जाको सकल विश्व सर साधें हो ।

ताको नार छेदत व्रजयुवती वांटि तगासो बाँधे ।।२।।

जा मुख को सनकादिक लोचत सकल चातुरी ठाने ।

सोई मुख निरखत महरि यशोदा दूध लार लपटाने ।।३।।

जिन श्रवनन सुनी गजकी आपदा गरुडासन विसराये ।

तिन श्रवननके निकट जसोदा गाये और हुलरावे ।।४।।

जिन भूजान प्रहलाद उबार्यो हरनाकुस ऊर फारे ।

तेई भुज पकरि कहत व्रजगोपी नाचो नैक पियारे ।।५।।

अखिल लोक जाकी आस करत है सो माखनदेखि अरे है ।

सोई अद्भुत गिरिवरहु ते भारे पलना मांझ परे है ।।६।।

सुर नर मुनि जाकौ ध्यान धरत है शंभु समाधि न टारी ।

सोई प्रभु सूरदास को ठाकुर गोकुल गोप बिहारी ।।७।।


साज – श्रीजी में आज फ़िरोज़ी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज फ़िरोज़ी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चागदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं एवं फ़िरोज़ी छापा का गाती का रुमाल (पटका) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर लसनिया का जड़ाऊ कूल्हे पर पगा का पान के ऊपर टीपारा का साज़ (मध्य में चन्द्रिका, दोनों ओर दोहरा कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

आज चोटीजी नहीं आती हैं.

श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. गुलाब के पुष्पों की एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजीधराये जाते हैं.

पट फ़िरोज़ी व गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती है.


सभी समां के कीर्तन

मंगला - महा महोच्छव श्री गोकुल गाम

राजभोग - देखो अद्भुत अवगत की गत

आरती - विट्ठलनाथ बसत हिय जाके

शयन - भक्ति सुधा बरखत ही प्रकटे

मान - हों तो सों अब कहा कहु आली

पोढवे - रूच रूच सेज बनाई


 
 
 

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