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व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी

Monday, 13 December 2021


अंखियन ऐसी टेव परी ।

कहा करों वारिज मुख उपर लागत ज्यों भ्रमरी ।।१।।

हरख हरख प्रीतम मुख निरखत रहत न एक घरी ।

ज्यों ज्यों राखत यतनन करकर त्यों त्यों होत खरी ।।२।।

गडकर रही रूप जलनिधि में प्रेम पियुष भरी ।

"सुरदास" गिरिधर नग परसत लूटत निधि सघरी ।।३।।

गुलाबी साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और चंद्रिका या क़तरा के शृंगार


जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.


ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर चंद्रिका या क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : आसावरी)


चलरी सखी नंदगाम जाय बसिये ।खिरक खेलत व्रजचन्दसो हसिये ।।१।।

बसे पैठन सबे सुखमाई ।

ऐक कठिन दुःख दूर कन्हाई ।।२।।

माखनचोरे दूरदूर देखु ।

जीवन जन्म सुफल करी लेखु ।।३।।

जलचर लोचन छिन छिन प्यासा ।

कठिन प्रीति परमानंद दासा ।।४।।


साज – श्रीजी में आज गुलाबी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी साटन पर रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच क़तरा या चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी धरायी जाती हैं.

श्रीकंठ में कमल माला एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़िरोज़ी मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट गुलाबी व गोटी मीना की आती है.


संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.


सभी समां के कीर्तन

मंगला - जगती पर जै जै कार

राजभोग - पूत भयो री नंद महर के

आरती - लक्ष्मण नंदन जे जे जे श्री

शयन - लक्ष्मण कुल चंद उदित

मान - चढ बढ़ बिड़र गई री आली

पोढवे - लागत है अति सीत की निकी रितु


 
 
 

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