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व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी

Wednesday, 08 December 2021


श्रीजी में श्रीनवनीतप्रियाजी का द्वितीय मंगलभोग, श्री मदनमोहनजी (कामवन) का पाटोत्सव


विशेष – श्रीजी में आज द्वितीय मंगलभोग है. वैसे तो श्रीजी को नित्य ही मंगलभोग अरोगाया जाता है परन्तु गोपमास में चार मंगलभोग विशेष रूप से अरोगाये जाते हैं.


मंगलभोग का मुख्य भाव यह है कि शीतकाल में रात्रि बड़ी व दिन छोटे होते हैं.

शयन उपरांत जब अंतराल अधिक होता तब यशोदाजी को यह आभास होता कि लाला को भूख लग आयी होगी अतः तड़के ही सखड़ी की सामग्रियां सिद्ध कर बालक श्रीकृष्ण को अरोगाते थे. इस भाव से शीतकाल में मंगलभोग श्री ठाकुरजी को अरोगाये जाते हैं.


एक और भाव यह भी है कि शीतकाल में बालकों को पौष्टिक खाद्य खिलाये जावें तो बालक स्वस्थ व पुष्ट रहते हैं इसी भाव से ठाकुरजी को अरोगाये जाते हैं.


इनकी यह विशेषता है कि इन चारों मंगलभोग में सखड़ी की सामग्री भी अरोगायी जाती है.


एक और विशेषता है कि ये सामग्रियां श्रीजी में सिद्ध नहीं होती. दो मंगलभोग श्री नवनीतप्रियाजी के घर के एवं अन्य दो द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर के होते हैं. अर्थात इन चारों दिवस सम्बंधित घर से श्रीजी के भोग हेतु सामग्री मंगलभोग में आती है.


आज श्री नवनीतप्रियाजी के घर का दूसरा एवं अंतिम मंगलभोग है जिसमें विशेष रूप से आखे (साबुत) बैंगन के पकौड़े, बैंगन भात, लपसी व कुछ अन्य सामग्रियां श्रीजी के भोग हेतु आती है.


श्रृंगार से राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिवसों की तुलना में थोड़ा जल्दी होता है.


आज श्रीजी को पतंगी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की किनारी के फूलों से सुसज्जित सूथन, चोली घेरदार वागा का श्रृंगार धराया


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : आसावरी)


सुन मेरो वचन छबीली राधा, तै पायो रससिन्धु अगाधा ।।१।।

जे रस निगम नेति नेति भाख्यो ताकौ ते अधरामृत चाख्यो ।।२।।

शिव विरंचि के ध्यान न आवे,ताकौ कुंजनि कुसुम बिनावे ।।३।।

तू वृषभानु गोपकी बेटी मोहनलाल को भावते भेटी ।।४।।

तेरो भाग्य नहि कहत आवे कछुक रस परमानंद पावे ।।५।।


साज – आज श्रीजी में गहरे गुलाबी रंग की हरे रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को पतंगी रंग का सुनहरी ज़री के पुष्पकाम के वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते है.


श्रीमस्तक पर हीरा की जड़ाऊ गोलपाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, चमकनी गोल-चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.श्रीमस्तक पर अलख धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में झुमका के कर्णफूल धराये जाते हैं.

लाल रंग एवं श्वेत रंग के पुष्पों की दो अत्यंत सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.


श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी ( भाभीजी वाले) धराये जाते हैं.

पट गुलाबी एवं गोटी चाँदी की आती हैं.


संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर हीरा की पाग बड़ी कर के गुलाबी गोल पाग धरा कर रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.


 
 
 

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