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व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा

Monday, 02 December 2024

गुलाबी साटन के चाकदार वागा पर श्रीमस्तक पर पचरंगी पाग पर जमाव के क़तरा व तुर्री के शृंगार


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : तोड़ी)


अबही डार देरे ईडुरिया मेरी पचरंगी पाटकी ।

हाहाखात तेरे पैया परत हो इतनो लालच मोहि मथुरा नगरके हाटकी ।।१।।

जो न पत्याऊ जाय किन देखो मनमोहन हैज़ु नाटकी ।

मदन मोहन पिय झगरो कौन वध्यो सो देखेंगी लुगाई वाटकी ।।२।।


साज – श्रीजी में आज गुलाबी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका गुलाबी मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर पचरंगी पाग के ऊपर सिरपैंच और जमाव का क़तरा व रूपहरी तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल की दो जोड़ी धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में कमल माला एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. रेशम की लूम धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.

पट गुलाबी व गोटी मीना की आती है.



संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

 
 
 

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