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व्रज - वैशाख शुक्ल अष्टमी (द्वितीय)

व्रज - वैशाख शुक्ल अष्टमी (द्वितीय)

Thursday, 16 May 2024

श्वेत मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका (मोरशिखा) के श्रृंगार

राजभोग दर्शन –

साज – (राग : सारंग)

आवत ही यमुना भर पानी l

श्याम रूप काहुको ढोटा वाकी चितवन मेरी गैल भुलानी ll 1 ll

मोहन कह्यो तुमको या व्रजमें हमे नहीं पहचानी l

ठगी सी रही चेटकसो लाग्यो तब व्याकुल मुख फूरत न बानी ll 2 ll

जा दिनतें चितये री मो तन तादिनतें हरि हाथ बिकानी l

'नंददास' प्रभु यों मन मिलियो ज्यों सागरमें सरित समानी ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत जाली (Net) की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. पिछोड़ा रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है.

मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर श्वेत रंग के ग्वाल पगा पर मोती की लड़, पगा चंद्रिका (मोरशिखा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.

श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं इसी प्रकार की एक कमल माला हमेल की भांति धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.


पट ऊष्णकाल का एवं गोटी बाघ बकरीं की आते हैं.

 
 
 

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