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व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल द्वितीया

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल द्वितीया

Saturday, 19 September 2020


आज के मनोरथ-


राजभोग में रथ का मनोरथ


शाम को मणिकोठा में श्री मदनमोहनलालजी खुले रथ में बिराजे


विशेष – आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है.

ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, मौसम की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.


मुझे ज्ञात जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को स्वेत धोती पटका श्रीमस्तक पर स्वेत कुल्हे और तीन मोर चंद्रिका की जोड़ धरायी जायेगी.


राजभोग दर्शन -


कीर्तन – (राग : अड़ाना)


सुंदर वदन री सुख सदन श्यामको,

निरख नैन मन थाक्यो।।

हों ठाडी बिथिन व्हे निकस्यो,

उझाकि झरोखा झांक्यो।।१।।

लालन एक चतुराई कीनी,

गेंद उछार गगन मिस ताक्यो।।

बेरीन लाज भयी री मोको,

में गवार मुख ढांप्यो।।२।।

चितवन में कछु कर गयो मो तन,

चढ्यो रहत चित चाक्यो।।

"सुरदास"प्रभु सर्वस्व लेकें,

हंसत हंसत रथ हांक्यो।।३।।


साज - श्रीजी में आज रथयात्रा के चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. पिछवाई में रथ का चित्रांकन इस प्रकार किया गया है कि श्रीजी स्वयं रथ में विराजित प्रतीत होते हैं. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज स्वेत मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं गाती का उपरना धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र केसरी धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

हांस, त्रवल, कड़ा, हस्तसांखला, पायल आदि सभी धराये जाते हैं.

रंग-बिरंगी पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट स्वेत सुनहरी किनारी का एवं गोटी सोना की राग रंग की आती हैं.

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