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व्रज – आश्विन कृष्ण द्वितीया

व्रज – आश्विन कृष्ण द्वितीया

Friday, 04 September 2020


आज श्रीजी को मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा.


दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है.


दान के दिनों के मुकुट काछनी के श्रृंगार की कुछ और विशेषताएँ भी है.


इन दिनों में जब भी मुकुट धराया जावे तब मुकुट को एक वस्त्र से बांधा जाता है जिसे मुकुट पीताम्बर कहा जाता है जिससे जब प्रभु मटकी फोड़ने कूदें तब मुकुट गिरे नहीं.


इसके अतिरिक्त दान के दिनों में मुकुट काछनी के श्रृंगार में स्वरुप के बायीं ओर चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती. इसके पीछे यह भाव है कि यदि चोटी (शिखा) रही तो प्रभु जब मटकी फोड़कर भाग रहे हों तब गोपियाँ उनकी चोटी (शिखा) पकड़ सकती हैं और प्रभु भाग नहीं पाएंगे.


ऐसे अद्भुत भाव-भावना के नियमों से ओतप्रोत पुष्टिमार्ग को कोटि-कोटि प्रणाम


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


आज दधि कंचन मोल भई।

जा दधि को ब्रह्मादिक इच्छत सो गोपन बांटि दई॥१॥


दधि के पलटे दुलरी दीनी जसुमति खबर भई।

परमानंददास को ठाकुर वरवट प्रीति नई॥२॥


कीर्तन – (राग : सारंग)


यहाँ अब काहे को दान देख्यो न सुन्यो कहुं कान l

ऐसे ओट पाऊ उठि आओ मोहनजु दूध दही लीयो चाहे मेरे जान ll 1 ll

खिरक दुहाय गोरस लिए जात अपने भवन तापर ईन ऐसी ठानी आनकी आन l

‘गोविंद’ प्रभु सो कहेत व्रजसुंदरी, चलो रानी जसोदा आगे नातर सुधै देहो जान ll 2 ll


साज – आज प्रातः श्रीजी में गहरवन में दूध-दही बेचने जाती गोपियों के पास से दान मांगते एवं दूध-दही लूटते श्री ठाकुरजी एवं सखा जनों के सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है.

गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को हरे मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी तथा रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद भातवार के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का उत्सव का भारी श्रृंगार धराया जाता है.माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाति हैं.

श्रीमस्तक पर जड़ाऊ मोतीपड़ा के टोपी व मुकुट एवं मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में सोना के कुंडल धराये जाते हैं. चोटी नहीं धरायी जाती है.

पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, वेणु, वेत्र हरे मीना के धराये जाते हैं.

पट हरा एवं गोटी दान की आती हैं.


 
 
 

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