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व्रज – कार्तिक कृष्ण तृतीया

व्रज – कार्तिक कृष्ण तृतीया

Tuesday, 03 November 2020


धनतेरस का प्रतिनिधि का श्रृंगार


बड़े उत्सवों के पहले उन उत्सवों के प्रतिनिधि के श्रृंगार धराये जाते हैं.

ये उत्सव के मुख्य श्रृंगार के भांति ही होते हैं अतः इन्हें प्रतिनिधि (आगम) के श्रृंगार भी कहे जाते हैं.


इसी श्रृंखला में आज दीपावली के पहले वाली त्रयोदशी अर्थात धनतेरस को धराये जाने वाला श्रृंगार धराया जायेगा जिसमें कत्थई आधारवस्त्र पर कला बत्तू के सुन्दर काम से सुसज्जित पिछवाई, हरी सलीदार ज़री के वस्त्र एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है.

लगभग यही वस्त्र व श्रृंगार दीपावली के पूर्व की त्रयोदशी (धनतेरस) को भी धराये जायेंगे.


इस श्रृंगार को धराये जाने का अलौकिक भाव भी जान लें.

अन्नकूट के पूर्व अष्टसखियों के भाव से आठ विशिष्ट श्रृंगार धराये जाते हैं. जिस सखी का श्रृंगार हो उनकी अंतरंग सखी की ओर से ये श्रृंगार धराया जाता है. आज का श्रृंगार ललिताजी की ओर का है.


यह श्रृंगार निश्चित है यद्यपि इस श्रृंगार को धराये जाने का दिन निश्चित नहीं है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


येही हे कुलदेव हमारो l

काहू नहीं और हम जाने गोधन हे व्रज को रखवारो ll 1 ll

दीप मालिका के दिन पांचक गोपन लेहु बुलाय l

बलि सामग्री करो अबही तुम कही सबन समुझाय ll 2 ll

लिये बुलाय महरि महेराने सुनत सबे उठि धाई l

नंदघरनी यो कहत सखिनसो कित तुम रहत भुलाई ll 3 ll

भूली कहा कहत हो हमसो कहत कहा डरपाई l

‘सूरदास’ सूरपति की सेवा तुम सबहिन विसराई ll 4 ll


साज - श्रीजी में आज कत्थई रंग के आधारवस्त्र के ऊपर सुनहरी के कशीदे (कला बत्तू) के ज़रदोज़ी के काम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज हरे रंग की सलीदार ज़री की सूथन, पटका, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरे, मोती, पन्ना,माणक एवं स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

त्रवल के स्थान पर टोडर धराये जाते हैं. कस्तूरी, कली आदि सब माला धरायी जाती हैं.

श्रीमस्तक पर हरी सलीदार ज़री चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर माणक का पट्टीदार सिरपैंच, उसके ऊपर-नीचे मोती की लड़, नवरत्न की किलंगी, मोरपंख की चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में माणक के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

पीठिका के ऊपर जड तल (हीरे) का जड़ाव का चौखटा धराया जाता है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, माणक के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (माणक व सोने के) धराये जाते हैं.

पट हरा, गोटी शतरंज की सोने की व आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने के डांडी की आती है.


संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.


 
 
 

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