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व्रज – भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी

Tuesday, 01 September 2020


विशेष - आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है.

ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, मौसम की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.


मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को मल्लकाछ टिपारा का श्रृंगार धराया जायेगा.


मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) के मेल से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


ग्वालिनी मीठी तेरी छाछि l

कहा दूध में मेलि जमायो साँची कहै किन वांछि ll 1 ll

और भांति चितैवो तेरौ भ्रौह चलत है आछि l

ऐसो टक झक कबहु न दैख्यो तू जो रही कछि काछि ll 2 ll

रहसि कान्ह कर कुचगति परसत तु जो परति है पाछि l

‘परमानंद’ गोपाल आलिंगी गोप वधू हरिनाछि ll 3 ll


साज – आज श्रीजी में श्री गोवर्धन शिखर, सांकरी खोर, गौरस बेचने जाती गोपियों एवं श्री ठाकुरजी एवं बलरामजी मल्लकाछ-टिपारा धराये भुजदंड से मटकी फोड़ने के लिए श्रीहस्त की छड़ी ऊंची कर रहे हैं एवं मटकी में से गौरस छलक रहा है ऐसे सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज फ़िरोज़ी (चित्र में भिन्न) मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस किनारी से सुसज्जित मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पिले रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज श्रीकंठ के शृंगार छेड़ान(हल्के) के बाक़ी सब भारी श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में लाल वस्त्र पर मोतियों से सुसज्जित मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.

श्रीकंठ में कुंडल धराये जाते हैं.

कमल माला धराई जाती हैं.

श्वेत पुष्पों की कलात्मक, रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.पट फ़िरोज़ी एवं गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती हैं.

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