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होरी डंडा डंडारोपण- के उत्सव की भावना

होरी डंडा डंडारोपण- के उत्सव की भावना

माघ शुक्ल १५ के दिन व्रज की रीति अनुसार होरी डंडा रोपणी उत्सव होता है ।।

श्री नंदरायजी उस दिन अपने परिकर को लेके श्री गोकुल के चोहटे पर साज समाज सहित होरी डंडा रोपणी करवे के लिये कीर्तन करते करते बडे आनंद उल्लास के साथ ब्रजभक्तो के संग होली डंडा लेके पधारते है ।। और श्री मद्गोकुल के चोहटे पर होरी डंडा रोपण करते है और बडे हर्षोल्लास के वातावरण मे होरी डंडारोपण उत्सव मनाते हैl

स समय सब व्रजभक्त बंदो मुनसाई नंद के होरी डंडा रोप्यो जू ।।

ये पद का बहुत सुंदर गायन

राग अल्हैया बिलावल मे करते है ।। खूब नाचते गावते सब ब्रज भक्तन के संग गुलाल सु खेलते भये धूम मचाते हुए *परमानंद का अनुभव करते है और फिर श्री यमुनाजी मे स्नान करी के अपने घर लौटते है ।।*

मंगल डाँडो रोपें होरी, नंदगाम बरसाना टोरी ll अबीर गुलाल दोउ हाथन भर भर, मुख मांडे हँसि चन्दन रोरी ll भर पिचकारी केसर रंग की, भिंजवे अम्बर चुनरी चोरी ll बाढ़ी केलि खेलें परस्पर, इत कान्हा उत राधा गोरी ll विजय पताका वो फहराये, जो जीते रस रंगन होरी ll

बसंत पंचमी से आज माघ शुक्ल पूर्णिमा तक के दिन बसंत के खेल के कहे जाते हैं.

इन दस दिनों में प्रिया-प्रीतम को युगल स्वरुप के रूप में पधराकर शांत भाव से सूक्ष्म खेल किया जाता है. प्रकृति के सौन्दर्य के दर्शन का आनंद विशेष प्रकार से लिया जाता है जो कि बसंत के कीर्तनों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है.

श्यामसुंदर को मूर्तिमंत बसंत स्वरुप जान के भक्तजन इसका वर्णन कर प्रभु को रिझाते हैं.

देखो प्यारी कुंजविहारी मूरतिमंत वसंत l मोर तरुन तरुलता तन में मनसिज रस वरसंत ll

आज माघ शुक्ल पूर्णिमा को होली डांडा रोपण के पश्चात से दस दिन धमार खेल के होंगे. तत्पश्चात फाल्गुन कृष्ण एकादशी से आगामी दस दिन फाग के और फाल्गुन शुक्ल षष्ठी से अंतिम दस दिन होली के खेल होते हैं.

इस प्रकार 40 दिनों की होली खेल की सेवा चार (बसंत, धमार, फाग एवं होली) रीतियों से की जाती हैं. होली खेल की लीला का स्वरुप ऐसा है कि जैसे-जैसे दिन व्यतीत होते जाते हैं, वैसे-वैसे होली के खेल में वृद्धि होती जाती है. बसंत का खेल नन्दभवन में, धमार का खेल पोल (पोरी) में, तीसरा फाग का खेल गली में और चौथा होली का खेल गाँव के बाहर के चौक में खेला जाता है.

व्रज में प्राचीन परम्परानुसार होली-डांडा रोपण होली के एक मास पूर्व आज पूर्णिमा के दिन गाँव के चौक अथवा गाँव के बाहर किया जाता है. यमुना पुलिन, गिरिराज जी, वृन्दावन, कुंज-निकुंजों आदि में डांडा रोपण किया जाता है.

सभी पुष्टिमार्गीय हवेलियों व मंदिरों में भी होली-डांडा रोपण किया जाता है. *कृपया ध्यान दें कि वैष्णवों की गृह-सेवा में यह सेवा प्रकार नहीं किया जाता.

इसके पीछे यह भावना है कि व्रजभक्तों को सुख-दान हेतु प्रभु रसक्रीड़ा करते हैं तब एक मास तक निर्विध्न सब खेल हों इसके लिए ब्राह्मण स्वस्तिवाचन, मंत्रोच्चार एवं वेद-ध्वनि कर डांडा रोपण करते हैं.* *डांडा के ऊपर लाल रंग की ध्वजा फहरायी जाती है जो कि हार-जीत की प्रतीक है अर्थात योगी प्रभु श्रीकृष्ण को अपने वश में करने आये कामदेव की चुनौती प्रभु ने स्वीकार कर ली है.

नंदरायजी, वृषभानजी, बड़े गोप, यशोदाजी,* *गोपी-ग्वाल, गोपाल, बलदेव आदि सभी दंडवत प्रणाम कर धमार का प्रारंभ करते हैं

होली-डांडा रोपण मुहूर्त के आधार पर किया जाता है और सामान्यतया जिस समय डांडा रोपण किया जाए, होलिका दहन उसके विपरीत समय किया जाता है अर्थात यदि होली डांडा रोपण सूर्यास्त के पश्चात हो तो होली के त्यौहार के दिन होलिका दहन सूर्योदय के समय होता है वहीँ यदि डांडा रोपण प्रातः सूर्योदय के पश्चात हो तो दहन सूर्यास्त के समय किया जाता है.१

आज का उत्सव श्री यमुनाजी की सेवा के दस दिन की पूर्णता का उत्सव है. फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा से दस दिन धमार के दिन कहे जाते हैं और ये श्री चन्द्रावलीजी की सेवा के दिवस हैं.,

बसंत पंचमी से आज तक केवल वसंत राग के पद गाये जाते हैं जबकि होली-डांडा रोपण के पश्चात धमार का प्रारंभ हो जायेगा अर्थात आज से अन्य राग के पद भी गाये जा सकेंगे. धमार एक विशिष्ट ताल होती है और आज से दस दिनों तक इस ताल के पद भी गाये जायेंगे.

कीर्तन – (राग : वसंत)

लालन संग खेलन फाग चली l चोवा चन्दन अगर कुंकुमा छिरकत गोख गली ll १ ll ऋतु वसंत आगम नव नागरी जोबन भार भरी l देखत चली लाल गिरिधरको नंदजुके द्वार खरी ll २ ll रातीपीरी चोली पहेरें नौतन झुमक सारी l मुखहि तंबोल नेनमें काजर देत भामती गारी ll ३ ll बाजत ताल मृदंग बांसुरी गावत गीत सुहाये l नवल गुपाल नवल व्रजवनिता निकसि चोहटे आये ll ४ ll देखो आई कृष्णजुकीलीला विहरत गोकुल माहीं l कहत न बने दास ‘परमानंद’ यह सुख अनतजु नाहीं ll ५!! ll

✨श्रीयमुनाजी की सेवा के के पूर्णता का यह उत्सव है।

माध् कृष्ण पक्ष एकम से दस दिन धमार के दिन कहते है। आज से धमार गाने का प्रारंभ होरी दंडा रोपण का मुहुर्त - श्याम के सूर्योदय से शुरु होगा। जो वैष्णव श्याम तक की में पहोंचे है- वह यह दिन से धमार के पद गाना शुरु कर सकता है। लेकिन जो वैष्णव दुपहर तक की सेवा में पहोंच ते है वो माध कृष्ण पक्ष ऐकम से शुरू करें! धमार के दस दिन श्री चंद्रावलजी सेवा है आज से ,बसंत राग उपरांत भैरव, रामकली, देव गंधार, खट, बिभास, बिलावल, ललित, मालकोस, टोडी, धनाश्री, आसावरी, जेतश्री, काफी, नट,गोरी, पूर्वी, बिहाग राग गाने सकते है।

होरी दंडा रोपण द्वारा कंदर्प ( कामदेव) का आरोपण होता है* *यह अलौकिक और भावात्मक प्रकार है। होली के एक मास पहले गांव के चोक में, व्रज में यमुना पुलीन,गिरिराज, वृंदावन, कुंज-निकुंज, में डंडा रोपण करते है। हवेलियों में भी डंडा करते है। वैष्णवों की गृहसेवा सिर्फ धमार के पद गाये जाते है।

होरी खेल: - राजभोग सरे, आचमन, मुख वस्त्र थाय, बीरी आरोगे झारी भराय बाद में खेल शुरु करें। चंदन से खेलना, बाद में गुलाल /अबीर से कपोल रंगाय- ( बहुत से घर में गुलाल से श्रीअंग भी खेलते है) आज से डोल के एक दिन पहले नित्य कपोल रंगाय-डोल के दिन नहीं।

आज से खेल में चोवा, चंदन की बरणी,अरगजा, पिचकारी, केसूडा नित्य आये। ध्यान रखें-श्रीजी के श्रीअंग को पिचकारी, भीने रंग-जल से खेलना नहीं-( मना) है। आज से होली तक शृंगार से शयन तक - अबीर - गुलाल की फेंट ( पोटली) नित्य आवे कृपया ध्यान रखें रसिया का गान-श्रीनाथजी के पाटोत्सव से डोल तक कर सकते है। फिर भी गुरुघर की आज्ञा लेकर सेवा प्रकार चालु रखना

होरिदंडा एवं धमार प्रारम्भ की अग्रिम बधाईमाई री! नाहिंन दोस गोपालै।। मेरो मन अटक्यो उनि मूरति अंबुज - नैन बिसालै।।१।। कौन - कौन कौ मनु न चुरायो वह मुसकनि वह गावनि।। वह मुरली वह चालि मनोहर वह कल बेनु बजावनि।।२।। अपनौ बिगारु कौन सों कहिए आपहि काज रति जोरी।। "परमानंद" स्वामी मनमोहन हौं अजान मति भोरी।।३।। होरी डांडा रोपण राग- बसंत

ऋतु बसंत सुख खेलिये हो आयो फागुन मास॥ होरी डांडो रोपियो सब ब्रजजन मन हुल्लास॥१॥ रजनी मुख ब्रज आइयो गोधन खरिक मंझार॥ सखा नाम सब बोल कें घर घर तें दे तब गार॥२॥ बङे गोपवृषभान के आये सब मिल पोरी॥ श्रवन सुनत प्यारी राधिका चढी चित्रसारी दोरी॥३॥ उझखि झरोखा झाँकियो दोउन मन आनंद।। एसी छबि तन लागियो मानो निकस्यो घटातें चंद।।४।। वासर खेल मचाइयो नेरे आयो फाग।। झूमक चेतव गावही मनमोहन गोरी राग।।५।। नरनारी एकत्र भये घोषराय दरबार।। चहुंदिस तें सब दौरियो भूषण वसन सिंगार।।६।। अगणित बाजे बाजज्ञही रुंज मुरज निसान।। डफ दुंदुभी ओर झालरी कछुबन सुनियत कान।।७।। पिचकाई कर कनक की अरगजा कुंकुम घोर।। प्राणपिया कों छिरकही तक तक नवलकशोर।।८।। बहुरि सखा सब दोरियो आगें दे बलवीर।। युवती जन पर बरखही नवल गुलाल अबीर।।९।। ललिता विसाखा मतो मत्यो लीनों सुबल बुलाया।। चेरी तेरे बाप की नेंक मोहन कों पकराय।।१०।। तबे सुबल कौतुक रच्यो सुनों सखा एक बात।। इनें भीतर जान देहु बोलत जसोदा मात।।११।। हरें हरें सबरेंगि चली नेरें निकसी आय।। सेन सबें दे दोरियो पकरें बलमोहन जाय।।१२।। प्यारी को अंचल लियो और पिय को पट पीत।। सकतहीं गठजोरो कियो भले बने दोऊ मीत।।१३।। फगुवा में मुरली लई ओर कंठ को हार।। श्रीराधा कों पहराइयो हँसत दे दे करतार।।१४।। मेवा मोल मंगाइयो फगुवा दियो निवेर।। मन भायो कर छाँडियो हँसत वदन तन हेर।।१५।। यह विधि होरी खेलही ब्रजवासिन संग लगाय।। युगल कुंवर के रूप में जन "गोविंद" बलबल


 
 
 

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