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त्रिदुःखसहनं धैर्यम्

”त्रिदुःखसहनं धैर्यम्"


जब भक्त के जीवन मे लौकिक क्लेश आते है या बढ़ते है तब भक्त भगवान से ओर अधिक जुड़ता है इसलिये भक्त के जीवन मे दुःख अधिक आते हैं.


दुख जीव के अपने पाप के भोग है जिन्हें भोगने के लिये अन्य जीवो को कइ जन्म लेने पड़ते हैं पर भक्त पर भगवान कृपाकर इसी जन्म मे भोगने की सुविधा करा देते हैं इतना ही नहीं वे सूली का घाव सुइ पर उतरवा देते हैं |


अनेक जन्मो तक दुखी होने के बदले एक जन्म के दुख को दुख न समझ प्रभु का आशीर्वाद समझना चाहिये महाप्रभुजी का यही सकारात्मक अभिगम है तभी आपने आज्ञा की है ”त्रिदुःखसहनं धैर्यम्" अपने भगवदीयों मे से अनेक ने इस आज्ञा का पालन बहुत बहादुरी से किया है


जीवन के हर प्रसंग मे प्रभु लीला की भावना रखते हुये प्रभु इच्छा को सर्वोपरि माना है | भक्त सिंह के समान होता है जो दुखों के पहाड़ रूपी हाथी को देखकर डरता नहीं बल्कि बहादुरी से उसका सामना करता है ll

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© 2020 by Pushti Saaj Shringar.

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