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व्रज – आषाढ़ कृष्ण एकादशी

व्रज – आषाढ़ कृष्ण एकादशी

Monday, 05 July 2021


केसरी मलमल का पिछोड़ा, पटका एवं श्रीमस्तक पर दुमाला और मोती का सेहरा के शृंगार


योगिनी एकादशी


उत्थापन दर्शन पश्चात मोगरे की कली के श्रृंगार


जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.


ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को केसरी मलमल का पिछोड़ा, पटका एवं श्रीमस्तक पर दुमाला और मोती का सेहरा के शृंगार का श्रृंगार धराया जायेगा.


राजभोग दर्शन – (राग : सारंग)


आज बने गिरिधारी दुल्हे चंदनको तनलेप कीये l

सकल श्रृंगार बने मोतिन के विविध कुसुम की माल हिये ll 1 ll

खासाको कटि बन्यो है पिछोरा मोतिन सहरो सीस धरे l

रातै नैन बंक अनियारे चंचल अंजन मान हरे ll 2 ll

ठाडे कमल फिरावत गावत कुंडल श्रमकन बिंद परे l

‘सूरदास’ प्रभु मदन मोहन मिल राधासों रति केल करे ll 3 ll


साज – आज श्रीजी में सेहरा का श्रृंगार धराये श्री स्वामिनीजी, श्री यमुनाजी एवं मंगलगान करती व्रजगोपियों के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी मलमल का पिछोड़ा एवं अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं यद्यपि पिछोड़ा में किनारी को भीतर की ओर इस प्रकार मोड़ दिया जाता है कि बाहर दृश्य ना हों.


श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर मोती का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. दायीं ओर सेहरे की मोती की चोटी धरायी जाती है.

श्रीकर्ण में मोती के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

कली आदि की माला श्रीकंठ में धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी भी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, गंगा-जमनी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट गोटी ऊष्णकाल के राग-रंग के आते हैं.


आज शाम को मोगरे की कली के श्रृंगार धराये जायेंगे. इसमें प्रातः जैसे वस्त्र आभरण धराये जावें, संध्या-आरती में उसी प्रकार के मोगरे की कली से निर्मित अद्भुत वस्त्र और आभरण धराये जाते हैं.


उत्थापन दर्शन पश्चात प्रभु को कली के श्रृंगार धराये जाते हैं और शृंगार धराते ही भोग के दर्शन खोल दिए जाते और कली के शृंगार की भोग सामग्री संध्या-आरती में ली जाती हे.

संध्या-आरती के पश्चात ये सर्व श्रृंगार बड़े (हटा) कर शैया जी के पास पधराये जाते हैं. चार युथाधिपतियों के भाव से चार श्रृंगार – परधनी, आड़बंद, धोती एवं पिछोड़ा के धराये जाते हैं.

कली के श्रृंगार व्रजललनाओं के भाव से किये जाते हैं और इसमें ऐसा भाव है कि वन में व्रजललनाएं प्रभु को प्रेम से कली के श्रृंगार धराती हैं और प्रभु ये श्रृंगार धारण कर नंदालय में पधारते हैं.

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