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व्रज – आषाढ़ शुक्ल चतुर्थी

व्रज – आषाढ़ शुक्ल चतुर्थी

Wednesday, 14 July 2021


गुलाबी मलमल का सुवापंखी हाशिये का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और क़तरा अथवा चंद्रिका के शृंगार


जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.


ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का सुवापंखी हाशिये का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और क़तरा अथवा चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.


राजभोग दर्शन


कीर्तन – (राग : सारंग)


तनक प्याय दे पानी याहि मिस गए वाके घर l

समझ बूझ के जल भर लाई पीवन लागे ओक ढीली करि

तब ग्वालिन मंद मंद मुसिकानी ll 1 ll

वेही जल वैसे ही गयो ओर जल भर लाई

तब ग्वालिन बोली मधुर सी बानी l

‘चतुरबिहारी’ प्यारे प्यासे हो तो पीजिये

नातर सिधारो रावरे जु प्यास मैं जानी ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में गुलाबी मलमल की सुवापंखी हाशिये की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.


वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का सुवापंखी हाशिये का आड़बंद धराया जाता है. आड़बंद रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा अथवा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों एवं तुलसी की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ऊष्णकाल का गोटी हक़ीक की छोटी आती है.

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