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व्रज – आषाढ़ शुक्ल दशमी

व्रज – आषाढ़ शुक्ल दशमी

Monday, 19 July 2021


गुलाबी मलमल का आसमानी हाशिये का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और तुर्रा के शृंगार


विशेष – आज बैंगन दशमी है.

श्रीनाथजी के अलावा अन्य सभी पुष्टिमार्गीय वैष्णव मंदिरों में कल से चार माह अर्थात देवशयनी एकादशी से देव प्रबोधिनी एकादशी तक बैंगन का प्रयोग वर्जित है.

इसीलिए आज इन सभी पुष्टि स्वरूपों को अनसखड़ी भोग में बैंगन के गुंजा (समोसे), बैंगन के पकौड़े, बैंगन की सब्जी आदि विशेष रूप से आरोगाये जाते हैं वहीँ सखड़ी भोग में प्रभु को बैंगन भात, बैंगन की कढ़ी, बैंगन के पकौड़े, बैंगन के तले हुए चकते, आखा (भरवां) बैंगन की सब्जी आदि आरोगाये जाते हैं.


गोवर्धनधरण में बैंगन की कोई वर्जना नहीं है अतः श्रीजी को

पूरे वर्ष बैंगन से निर्मित सामग्रियां अरोगायी जाती हैं.

कई पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिवारों में चतुर्मास में बाजार से खरीद कर बैंगन नहीं खाए जाते परन्तु श्रीजी के अरोगे हुए महाप्रसाद के बैंगन की वर्जना नहीं होती.


जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.


ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का आसमानी हाशिये का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और तुर्रा का श्रृंगार धराया जायेगा.


राजभोग दर्शन


कीर्तन – (राग : मल्हार)


हों इन मोरनकी बलिहारी l

जिनकी सुभग चंद्रिका माथे धरत गोवर्धनधारी ll 1 ll

बलिहारी या वंश कुल सजनी बंसी सी सुकुमारी l

सुन्दर कर सोहे मोहन के नेक हू होत न न्यारी ll 2 ll

बलिहारी गुंजाकी जात पर महाभाग्य की सारी l

सदा हृदय रहत श्याम के छिन हू टरत न टारी ll 3 ll

बलिहारी ब्रजभूमि मनोहर कुंजन की अनुहारी l

‘सूरदास’ प्रभु नंगे पायन अनुदिन गैया चारी ll 4 ll


साज – आज श्रीजी में गुलाबी मलमल की आसमानी हाशिये की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.


वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का आसमानी हाशिये का आड़बंद धराया जाता है. आड़बंद रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों एवं तुलसी की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ऊष्णकाल का गोटी हक़ीक की छोटी आती है.

 
 
 

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