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व्रज - आषाढ़ शुक्ल पंचमी

व्रज - आषाढ़ शुक्ल पंचमी

Thursday, 15 July 2021


नियम को मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार


उत्थापन दर्शन पश्चात नियम का मोगरे की कली का शृंगार (कली के शृंगार पर विशिष्ट पोस्ट आज दोपहर तीन बजे)


आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में कुछ नियम के श्रृंगार धराये जाते हैं जो वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में भी धराये जाते हैं.

इसमें विशेष यह है कि ये वस्त्र श्रृंगार वैशाख मास में जिस क्रम से आवें उसके ठीक उलट क्रम से आषाढ़ मास में धराये जाते हैं.


आज श्रीजी को मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराया जायेगा. आज का दिन इस श्रृंगार के लिए नियत नहीं परन्तु सामान्यतया आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष के मध्य में धराया जाता है.


मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : मल्हार)


वृन्दावन कनकभूमि नृत्यत व्रज नृपतिकुंवर l

उघटत शब्द सुमुखी रसिक ग्रग्रतततत ता थेई थेई गति लेत सुधर ll 1 ll

लाल काछ कटि किंकिणी पग नूपुर रुनझुनत बीच बीच मुरली धरत अधर l

‘गोविंद’ प्रभु के जु मुदित संगी सखा करत प्रसंशा प्रेमभर ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में माखनचोरी लीला के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसमें कृष्ण-बलराम अपने मित्रों के साथ मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराये माखन चोरी कर रहे हैं. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. एक पटका आगे और एक कंदराजी पर आता हैं. ठाड़े वस्त्र चंदनी रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य (घुटने तक) का ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्वआभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें गुलाबी रंग की टिपारे की टोपी के ऊपर बीच में चमक की मोरशिखा, दोनों ओर दोहरे कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के कुंडल धराये जाते हैं. श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

हांस, त्रवल, कड़ा, हस्तसांखला, पायल आदि सभी धराये जाते हैं.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, गंगा जमनी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट उष्णकाल का व गोटी बाघ बकरी की आती हैं.

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