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व्रज - चैत्र शुक्ल तृतीया

व्रज - चैत्र शुक्ल तृतीया

Thursday, 15 April 2021


छबीली राधे,पूज लेनी गणगौर ।

ललिता विशाखा,सब मिल निकसी,

आइ वृषभान की पोर,

सधन कुंज गहवर वन नीको,

मिल्यो नंदकिशोर ।।

" नंददास " प्रभु आये अचानक,

घेर लिये चहुं ओर ।।


प्रथम (चुंदड़ी) गणगौर


आज से राजस्थान का प्रमुख पर्व गणगौर उत्सव आरम्भ होता है. सामान्यतया राजस्थान में चार (चूंदड़ी, हरी, गुलाबी एवं काजली) गणगौर होती है.


विश्व के सभी हिस्सों में बसे राजस्थानी विवाहित स्त्रियाँ गणगौर का पूजन करती हैं.

जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, नाथद्वारा, कांकरोली आदि में तो गणगौर के अवसर पर भव्य सवारियां निकाली जाती है.


नाथद्वारा में भी पूज्य श्रीतिलकायत के निजी आवास मोती-महल में ईशरजी व गणगौर की सुसज्जित प्रतिमाओं का पूजन किया जाता है.


श्रीजी में भी यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है यद्यपि गणगौर के चौथे दिन श्रीजी में श्री गुसांईजी के छठे पुत्र श्री यदुनाथजी का उत्सव होता है अतः श्रीजी में चौथी गणगौर काजली (श्याम) के स्थान पर केसरी रंग की मानी गयी है.


आज से प्रभु को चूंदड़ी व लहरिया के वस्त्र भी धराये जाने प्रारंभ हो जाते हैं. पहली गणगौर स्वामिनीजी के भाव की है अतः आज श्रीजी को लाल चूंदड़ी के खुलेबंद के चाकदार वस्त्र धराये जाते हैं.


आज श्रीजी को विशेष रूप से चूंदड़ी के भाव से ही गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में चिरोंजी (चारोली) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. चिरोंजी (चारोली) के लड्डू श्रीजी प्रभु को वर्ष में केवल पांच बार अरोगाये जाते हैं.


पहली तीनों गणगौरों (चूंदड़ी, हरी व गुलाबी) में रात्रि के अनोसर में श्रीजी को सूखे मेवे (बादाम, पिस्ता, काजू, किशमिश, चिरोंजी आदि), खसखस, मिश्री की मिठाई के खिलौने, ख़ासा भण्डार में सिद्ध मेवा-मिश्री के लड्डू, माखन-मिश्री आदि से सज्जित थाल अरोगाया जाता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


कुंवर बैठे प्यारीके संग अंग अंग भरे रंग,

बल बल बल बल त्रिभंगी युवतीन के सुखदाई l

ललित गति विलास हास दंपती मन अति हुलास

विगलित कच सुमनवास स्फुटित कुसुम निकट तैसीये सरद रेन सुहाई ll 1 ll

नवनिकुंज भ्रमरगुंज कोकिला कल कूजन पुंज

सीतल सुगंध मंद बहत पवन सुखदाई l

‘गोविंद’ प्रभु सरस जोरी नवकिशोर नवकिशोरी

निरख मदन फ़ौज मोरी छेल छबीलेजु नवलकुंवर व्रजकुल मनिराई ll 2 ll


साज – श्रीजी में आज लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज प्रभु को लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी का सूथन, चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सूवापंखी (तोते के पंख जैसे हल्के हरे रंग) रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. छेड़ान के हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम-तुर्री रूपहरी, डांख का नागफणी (जमाव) का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के चार कर्णफूल धराये जाते हैं.

चैत्री गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट लाल व गोटी मीना की चूंदड़ी भांत की आती है.


संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

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