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व्रज – पौष कृष्ण पंचमी

व्रज – पौष कृष्ण पंचमी

Monday, 04 January 2021


सेवा रीति प्रीति व्रजजनकी श्रीमुख तें विस्तरते,

श्रीविट्ठलनाथ अमृत जिन लीनो रसना सरस सुफलते.


श्री गुसांईजी के उत्सव का आगम का श्रृंगार


विशेष – आज श्री गुसांईजी के उत्सव की नौबत की बधाई बैठती है. उत्सव का आगम का पहला श्रृंगार धराया जाता है. सभी बड़े उत्सवों के पहले उस श्रृंगार का आगम का श्रृंगार धराया जाता है.


सरल भाषा में कहूँ तो आगम शब्द का अर्थ उत्सव के आगमन के आभास से है या यूं कहा जा सकता है कि प्रभुचरण श्रीगुसांईजी के उत्सव के आगमन का आभास जागृत करने के लिए आगम का श्रृंगार धराया जाता है.


आज श्रीजी को बिना किनारी के केसरी चाकदार वागा अड़तु के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर केसरी कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धरायी जाती है.


लगभग इसी क्रम के वस्त्र, आभरण पौष कृष्ण नवमी के दिन भी धराये जायेंगे.


जन्माष्टमी के उत्सव के चार श्रृंगार धराये जाते हैं परन्तु श्री महाप्रभुजी एवं श्री गुसांईजी के उत्सव के तीन श्रृंगार (एक आगम का, दूसरा उत्सव के दिन एवं तीसरा उत्सव के अगले दिन का परचारगी श्रृंगार) ही धराये जाते हैं.


कुछ वैष्णवों ने पूर्व में यह प्रश्न पूछा था कि इन दोनों उत्सवों के तीन श्रृंगार ही क्यों होते हैं ?


इसका कारण यह है कि जन्माष्टमी के चार श्रृंगार चार यूथाधिपतियों (स्वामिनीजी) के भाव से धराये जाते हैं परन्तु श्री महाप्रभुजी स्वयं स्वामिनीजी के एवं श्रीगुसांईजी श्रीचन्द्रावलीजी के स्वरुप हैं अतः आप स्वयं श्रृंगारकर्ता हों और स्वयं की ओर का श्रृंगार कैसे करें इस भाव से इन दोनों उत्सवों का एक-एक श्रृंगार कम हो जाता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


पौष निर्दोष सुख कोस सुंदरमास कृष्णनौमी सुभग नव धरी दिन आज l

श्रीवल्लभ सदन प्रकट गिरिवरधरन चारू बिधु बदन छबि श्रीविट्ठलराज ll 1 ll

भीर मागध भई पढ़त मुनिजन वेद ग्वाल गावत नवल बसन भूषणसाज l

हरद केसर दहीं कीचको पार नहीं मानो सरिता वही निर्झर बाज ll 2 ll

घोष आनंद त्रियवृंद मंगल गावें बजत निर्दोष रसपुंज कल मृदुगाज l

‘विष्णुदास’ श्रीहरि प्रकट द्विजरूप धर निगम पथ दृढथाप भक्त पोषण काज ll 3 ll


साज – श्रीजी में आज लाल रंग की मखमल की जन्माष्टमी वाली, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज सुन्दर केसरी ज़री का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं टकमा हीरा के मोजाजी धराये जाते हैं. सभी वस्त्र बिना किनारी के होते हैं. पटका केसरी फूल वाला धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) तीन जोड़ी के भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा-हीरा, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर जड़ाव स्वर्ण की केसरी कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

बायीं ओर हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.

श्रीकंठ में त्रवल, टोडर दोनों, कस्तूरी, कली आदि सब, एक हालरा व बघनखा धराये जाते हैं.

गुलाबी एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली मालाजी धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर जड़ाव स्वर्ण का उस्ताजी वाला चौखटा धराया जाता है.

श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (हीरा व स्वर्ण के) धराये जाते हैं.

पट काशी का, गोटी जड़ाऊ, आरसी राजभोग में सोने की एवं शृंगार में पिले खंड की आती है.

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