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व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण नवमी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण नवमी

Wednesday, 09 December 2020


शीतकाल का प्रथम सखड़ी मंगलभोग


विशेष – वैसे तो श्रीजी को नित्य ही मंगलभोग अरोगाया जाता है परन्तु गोपमास और धनुर्मास में चार सखड़ी की सामग्रीयो वाले मंगलभोग विशेष रूप से अरोगाये जाते हैं. मंगलभोग का भाव यह है कि शीतकाल में बालकों को पौष्टिक खाद्य खिलाये जावें तो बालक स्वस्थ व पुष्ट रहते हैं इसी भाव से ठाकुरजी को अरोगाये जाते हैं.


इनकी यह विशेषता है कि इन चारों मंगलभोग में सखड़ी की सामग्री भी अरोगायी जाती है. एक और विशेषता है कि ये सामग्रियां श्रीजी में सिद्ध नहीं होती.


दो मंगलभोग श्री नवनीतप्रियाजी के घर के एवं अन्य दो द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर के होते हैं. अर्थात इन चारों दिन सम्बंधित घर से श्रीजी के भोग हेतु सामग्री मंगलभोग में आती है.


आज का मंगलभोग श्री नवनीतप्रियाजी के घर का है जिसमें विशेष रूप से सखड़ी रसोईघर में सिद्ध चांवल की खीर एवं रोटी के साथ शाकघर, दूधघर, खासा-भण्डार से विविध पौष्टिक सामग्रियां श्रीजी के भोग हेतु आती है.

श्रीजी को आज सखड़ी की सामग्री अरोगायी जाती है अतः मंगला में धूप-दीप नहीं किये जाते हैं.


मंगला से राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिवसों की तुलना में थोड़ा जल्दी होता है.


आज की सेवा श्री कृष्णावतीजी की ओर से होती है. आज विशेष रूप से मोती के काम वाले वस्त्र, गोल-पाग एवं श्रृंगार आदि नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दामोदरलालजी महाराजश्री की आज्ञा से धराये जाते हैं.

कीर्तन भी मोती की भावना वाले गाये जाते हैं.


कल मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी को श्रीजी में प्रथम (हरी) घटा होगी.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : आसावरी)


मोती तेहू ठोर सबरारे l

जबहि तेरे गई चितवत उत जब नंदलाल पधारे ll 1 ll

अर्ध प्रोवत म श्याम मनोहर निकसे आय सवारे l

आधी लट कर लेव चली है जित व्रजनाथ सिधारे ll 2 ll

‘दास चतुर्भुज’ प्रभु चित्त चोर्यो गेह के काज बिसारे l

गिरिधरलाल भेंट बनमें तृन तौर सबै व्रत डारे ll 3 ll


साज – श्रीजी को आज श्याम रंग की साटन की, रुपहले मोतियों की बूटियों वाली तथा रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज प्रभु को श्याम रंग की साटन के ऊपर ‘बसरा’ के मोतियों के सुन्दर काम वाला सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र गहरे लाल रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर श्याम रंग की मोती के काम वाली गोल-पाग, सिरपैंच, दोहरा मोतियों का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.

श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत एवं पीले पुष्पों की गुलाबी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में मोती के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट श्याम व गोटी चांदी की आती है.


संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

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