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व्रज - अश्विन कृष्ण द्वितीया

व्रज - अश्विन कृष्ण द्वितीया

Tuesday, 09 September 2025


मुकुट काछनी का श्रृंगार


अहो विधना तोपै अँचरा पसार माँगू, जनम-जनम दिजौ याहि बृज बसिबौ।

अहिर की जात समीप नन्दघर, घरि-घरि घनस्याम सौं हेरि -हेरि हसिबौ॥

दधि के दान मिष बृजकी बिथीन माँझ झकझौरन अँग-अँगकौ परसिबौ।

छीतस्वामी गिरधारी विठ्ठलेश वपुघारी,सरदरैंन माँझ रस रास कौ बिलसिबौ॥


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


ग्वालिनी मीठी तेरी छाछि l

कहा दूध में मेलि जमायो साँची कहै किन वांछि ll 1 ll

और भांति चितैवो तेरौ भ्रौह चलत है आछि l

ऐसो टक झक कबहु न दैख्यो तू जो रही कछि काछि ll 2 ll

रहसि कान्ह कर कुचगति परसत तु जो परति है पाछि l

‘परमानंद’ गोपाल आलिंगी गोप वधू हरिनाछि ll 3 ll


साज – आज प्रातः श्रीजी में गहरवन में दूध-दही बेचने जाती गोपियों के पास से दान मांगते एवं दूध-दही लूटते श्री ठाकुरजी एवं सखा जनों के सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है.

गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज श्याम चौफुली चुंदड़ी की मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद जमदानी के होते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर मोती जड़ित स्वर्ण का मुकुट और मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

कस्तूरी कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.

पीले एवं श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.


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पट कोयली व गोटी दान की आती है.

 
 
 

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