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व्रज – आश्विन कृष्ण चतुर्दशी

व्रज – आश्विन कृष्ण चतुर्दशी

Saturday, 20 September 2025


ऋतु का छेला (अंतिम) पिछोड़ा का शृंगार


पचरंगी लहरियाँ का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर बाँकी गोल चंद्रिका के श्रृंगार


राजभोग दर्शन –व्रज – आश्विन कृष्ण चतुर्दशी


कीर्तन – (राग : सारंग)


कृपा अवलोकन दान देरी महादान वृखभान दुल्हारी ।

तृषित लोचन चकोर मेरे तू व बदन इन्दु किरण पान देरी ॥१॥

सबविध सुघर सुजान सुन्दर सुनहि बिनती कानदेरी ।

गोविन्द प्रभु पिय चरण परस कहे जाचक को तू मानदेरी ॥२॥


साज - श्रीजी में आज पचरंगी लहरियाँ की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी में आज पचरंगी लहरियाँ का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र फ़िरोज़ी रंग के होते हैं.


श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फिरोज़ा के सर्वआभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर पचरंगी लहरियाँ की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, बाँकी गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

पीले पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती है इसी प्रकार श्वेत पुष्पों की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, फिरोज़ा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.


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पट लाल एवं गोटी चाँदी की धराई जाती हैं.

 
 
 

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