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व्रज - आश्विन शुक्ल सप्तमी

व्रज - आश्विन शुक्ल सप्तमी

Tuesday, 12 October 2021


सातौ विलास कियौ श्यामाजू, गह्वर वनमें मतौजू कीन ।

मुख्य कृष्णावती सहचरी, लघु लाघव अति ही प्रवीन ।। १ ।।

बनदेवी हे गुंजा कुंजा, पुहुपन गुही सुमाल ।

चंद्रावली प्रमुदित बिहसत मुख, मुख ज्यों मुनिया लाल ।। २ ।।

रच्यौ खेल देवी ढिंग युवती, कोक कला मनोज ।

अति आवेश भये अवलोकत, प्रगटे मदन सरोज ।। ३ ।।

कोऊ भुजधर कर चरन उर कोऊ, अंग अंग मिलाय ।

कुंवर किशोरकिशोरी रसिकमणि, दास रसिक दुलराय ।। ४ ।।


विशेष – आज नवविलास के अंतर्गत सप्तम विलास का लीला स्थल गहवर वन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी कृष्णावतीजी हैं और सामग्री वड़ी एवं बूंदी है.

यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


बैठे हरि राधा संग कुंजभवन अपने रंग

कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई l

मोहन अति ही सुजान परम चतुर गुन निधान

जान बुझ एक तान चूकके बजाई ll 1 ll

प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुन प्रवीन

अति नवीन रूप सहित, वही तान सूनाई ll 2 ll

‘वल्लभ’ गिरिधरन लाल रिझ दई अंकमाल

कहत भले भले जु लाल सुंदर सुखदाई ll 3 ll


साज – श्रीजी को आज हरे रंग के छापा की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को लाल छापा का, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी वाला सूथन और इसी प्रकार हरे रंग के छापा के वस्त्र पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी वाले खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर हरे रंग का छापा की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का नागफणी का कतरा व लूम और तुर्री सुनहरी जरी की एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में कर्णफूल के दो जोड़ी धराये जाते हैं.

श्वेत रंग के पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी एवं कमल माला धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, झिने लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट हरा व गोटी चाँदी की आती है.

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