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व्रज – आषाढ़ कृष्ण पंचमी

व्रज – आषाढ़ कृष्ण पंचमी

Thursday, 11 July 2024


पीले मलमल का आसमानी हाशिये का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर तुर्रा के शृंगार


राजभोग दर्शन


कीर्तन – (राग : मल्हार)


हों इन मोरनकी बलिहारी l

जिनकी सुभग चंद्रिका माथे धरत गोवर्धनधारी ll 1 ll

बलिहारी या वंश कुल सजनी बंसी सी सुकुमारी l

सुन्दर कर सोहे मोहन के नेक हू होत न न्यारी ll 2 ll

बलिहारी गुंजाकी जात पर महाभाग्य की सारी l

सदा हृदय रहत श्याम के छिन हू टरत न टारी ll 3 ll

बलिहारी ब्रजभूमि मनोहर कुंजन की अनुहारी l

‘सूरदास’ प्रभु नंगे पायन अनुदिन गैया चारी ll 4 ll


साज – आज श्रीजी में पीले मलमल की आसमानी हाशिये की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.


वस्त्र – आज श्रीजी को पीले मलमल का आसमानी हाशिये का आड़बंद धराया जाता है. आड़बंद रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर पीले रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों एवं तुलसी की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है.


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श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ऊष्णकाल का गोटी हक़ीक की छोटी आती है.

 
 
 

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