top of page
Search

व्रज - आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी

व्रज - आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी

Sunday, 02 July 2023

ऋतु का अंतिम श्वेत मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर श्वेत फेटा और मोरपंख का दोहरा क़तरा के शृंगार

मैं नहीं जान्यो माई,

बहु नायक को नेह ।

मास अषाढ की धटा,घुमड आयी,

रिमझिम बरखत मेह ।।१।।

काहु त्रियन संग,नेह जोर के,

काहु के आवत प्रात उठ गेह ।

धोंधी के प्रभु रस बस कर लीने,

बड भागिन जुवति एह ।।२।।

विशेष – आज श्रीजी को नियम की परधनी

व श्रीमस्तक पर फ़ेट के ऊपर मोरपंख का दोहरा कतरा का श्रृंगार धराया जाता हैं. आज ऊष्णकाल में अंतिम बार परधनी धरायी जायेगी.

राजभोग दर्शन

कीर्तन – (राग : मल्हार)

अंग अंग घन कांति मोतीमाल बगपांत इन्द्र धनुष वनमाला शोभा छीन छीन है l

दामिनी की दमकन पीताम्बर की चमकन मुरली की घोर मोर नाचे रेन दिन है ll 1 ll

वृन्दावन चदरी जरी रे पंछी दीजे कहा री चहु न दीजे तो झंको न गिन है l

धरनी ते चंद्रिका लीनी सिरधारी गिरिधारी हंस बोले मोर तेरी मेरे रिन है ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग के मलमल की बिना किनारी की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग के मलमल की बिना किनारी की परधनी धरायी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

सर्व आभरण मोती के लड वाले, श्रीमस्तक पर स्याम झाई के श्वेत फेटा के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख का दोहरा कतरा और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में मोती के झुमका वाले कर्णफूल धराये जाते हैं. बध्घी मोती के लड़ की आती हैं.

श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.

श्वेत पुष्पों की ही दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है एवं पीठिका के ऊपर श्वेत पुष्पों की मोटी मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, गंगा जमनी के वेणुजी और एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट उष्णकाल का व गोटी बड़ीं हक़ीक की आती हैं.


ree

कल आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा है जिसे हम गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ी पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा और पुष्टिमार्गीय वैष्णव मंदिरों में कचौरी पूनम के नाम से भी जानते हैं.

 
 
 

Comments


© 2020 by Pushti Saaj Shringar.

bottom of page