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व्रज - आषाढ़ शुक्ल तृतीया (द्वितीय)

व्रज - आषाढ़ शुक्ल तृतीया (द्वितीय)

Tuesday, 09 July 2024


सुआ पंखी मलमल की गुलाबी हाशिया की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर तुर्रा के शृंगार


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


सोहत लाल के परदनी अति झीनी।।

तापर एक अधिक छबि उपजत जलसुत पांति बनी कटी छीनी।।1।।

उज्जवल पाग श्याम शिर शोभित अलकावली मधुप मधुपीनी।।

‘कुंभनदास' प्रभु गोवरधनधर चपल नयन युवतीन बस कीनी।।2।।


साज – आज श्रीजी में सुआ पंखी मलमल की गुलाबी हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को सुआ पंखी मलमल की गुलाबी हाशिया की मलमल की गोल छोर वाली रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित परधनी धरायी जाती है.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

मोती के आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर सुआ पंखी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ एक श्वेत एवं एक कमल के पुष्पों की माला हमेल की भांति धरायी जाती हैं.


श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.


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पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

 
 
 

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