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व्रज - आषाढ़ शुक्ल द्वादशी

व्रज - आषाढ़ शुक्ल द्वादशी

Monday, 07 July 2025


केसरी मलमल पर फ़ीरोज़ी हाशियां का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर गोल चंद्रिका के श्रृंगार


राजभोग दर्शन –


साज – (राग : मल्हार)


ढाँय ढाँय नाचत मोर सुन सुन नवधनकी घोर, बोलत है चहुँ और अति ही सुहावने।

घुमड़त घनघटा निहार आगम सुख जाय विचार,

चातक पिक मुदित गावत द्रुमन बैठे सुहावने ।।१।।

नवल वनमें पहरे तन में कसुंभी चीर कनक वरण, श्याम सुभग ओढ़े वसन पीत सुहावने।

पावस ऋतु को रंग बिलास दास चतुर्भुज प्रभु के संग,

मोहित कोटि अनंग गिरिधर पिय अंग अंग अतिही सुहावने ।।२।।


साज - श्रीजी में आज श्री गिरिराज जी, श्री यमुना जी, वन एवं उसमे यथेच्छ विहार करते पशु-पक्षियों के चित्रकाम वाली पिछवाई धराई जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी मलमल पर फ़िरोज़ी हाशियाँ का पिछोड़ा धराया जाता है. पिछोड़ा रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.


श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का शृंगार धराया जाता है.

मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.


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पट ऊष्णकाल का एवं गोटी हक़ीक की आते हैं.

 
 
 

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