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व्रज - कार्तिक शुक्ल षष्ठी (द्वितीय)

व्रज - कार्तिक शुक्ल षष्ठी (द्वितीय)

Tuesday, 28 October 2025


सुनहरी ज़री के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर चीरा (गोल पाग) पर पर गोल चन्द्रिका के शृंगार


ये इन्द्रमान भंग के दिन है अतः कार्तिक शुक्ल तृतीया से अक्षय नवमी तक इन्द्रमान भंग के कीर्तन गाये जाते हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : धनाश्री)


कान्हकुंवर के कर पल्लव पर मानो गोवर्धन नृत्य करे ।

ज्यों ज्यों तान उठत मुरली में त्यों त्यों लालन अधर धरे ।।१।।

मेघ मृदंगी मृदंग बजावत दामिनी दमक मानो दीप जरे ।

ग्वाल ताल दे नीके गावे गायन के संग स्वरजु भरे ।।२।।

देत असीस सकल गोपीजन बरषाको जल अमीत झरे ।

यह अद्भुत अवसर गिरिधरको नंददास के दुःख हरे ।।३।।


साज – आज श्रीजी में सुनहरी ज़री की रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. तकिया के ऊपर श्वेत रंग की एवं गादी एवं चरणचौकी के ऊपर हरे मखमल की बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर सुनहरी रंग के चीरा (गोल पाग) के ऊपर सिरपैंच, गोल चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट सुनहरी व गोटी चाँदी की आती है.



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प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर पाग पर लूम तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

 
 
 

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