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व्रज - चैत्र शुक्ल चतुर्दशी

व्रज - चैत्र शुक्ल चतुर्दशी

Monday, 22 April 2024

केसरी मलमल के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ग़्वाल पगा पर पगा चंद्रिका के शृंगार

राजभोग दर्शन –

कीर्तन (राग : घनाश्री)

यशोदा रानी जायो है सुत नीको l

आनंद भयो सकल गोकुलमें गोप वधु लाई टीको ll 1 ll

अक्षत दूब रोचन वंदन नंदे तिलक दहीं को l

अंचल वारि वारि मुख निरखत कमल नैन प्यारो जीकों ll 2 ll

अपने अपने भवन से निकसी पहेरे चीर कसुम्भी को l

'यादवेन्द्र' व्रजकुल प्रति पालक कंस काल भय भीको ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज केसरी रंग की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को केसरी मलमल का सूथन, चोली के चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी रंग के ग्वाल पगा पर सिरपैंच, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.

श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.

कमल माला धरायी जाती हैं.

गुलाबी गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.


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पट लाल एवं गोटी चाँदी बाघ बकरी की धरायी जाती हैं.

 
 
 

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