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व्रज - चैत्र शुक्ल पंचमी

व्रज - चैत्र शुक्ल पंचमी


Wednesday, 02 April 2025



रंगीली गुलाबी गनगौर आज चलो भामिनी कुंज छाक लै जैये।


विविध भांति नई सोंज अरपि सब अपने जिय की तृपत बुझैये॥


लै कर बीन बजाय गाय पिय प्यारी जेंमत रुचि उपजैये।


कृष्णदास वृषभानु सुता संग घूमर दै दै नंदनंद रिझैये॥



तृतीय (गुलाबी) गणगौर



विशेष – आज गुलाबी गणगौर है और ललिताजी के भाव की है अतः आज सर्व साज एवं वस्त्र गुलाबी घटावत धराये जाते हैं



आज के वस्त्र शीतकाल की गुलाबी घटा जैसे ही होते हैं परन्तु उन दिनों शीतकाल होने से वस्त्र साटन (Satin) के धराये जाते हैं और आज उष्णकाल के कारण मलमल के वस्त्र धराये जाते हैं.


इसके अतिरिक्त शीतकाल की गुलाबी घटा के दिन किनारी वाले वस्त्र नहीं होते जबकि आज के वस्त्र सुनहरी ज़री की किनारी से सुशोभित होते हैं.



प्रभु को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से चैत्री गुलाब का सीरा अरोगाया जाता है.



आज श्रीजी में नियम की चैत्री गुलाब की मंडली आती है.


श्रृंगार समय धरायी पिछवाई ग्वाल बाद बड़ी कर (हटा) दी जाती है और चैत्री गुलाब से निर्मित मंडली (बंगला) में प्रभु विराजित होते हैं.


मनोरथ के रूप में विविध सामग्रियां प्रभु को अरोगायी जाती हैं. राजभोग से संध्या-आरती तक प्रभु मंडली में विराजते हैं एवं आरती दर्शन के पश्चात मंडली हटा दी जाती है.


आज विशेष रूप से प्रभु में गोखड़े (तिबारी) वाली मंडली धरायी जाती है. इस प्रकार की मंडली में श्रीजी वर्ष में केवल आज के दिन ही विराजते हैं.



शयनभोग की सखड़ी में श्री नवनीतप्रियाजी में सिद्ध होकर श्रीजी के अरोगने के लिए गुलाब का सीरा आता है.



राजभोग दर्शन -



कीर्तन – (राग : सारंग)



कमलमुख देखत कौन अघाय l


सुनही सखी लोचन अलि मेरे मुदित रहे अरुझाय ll 1 ll


सोहति मुक्तामाल श्याम तन जनु बन फूली वनराय l


गोवर्धनधर के अंग अंग पर ‘कृष्णदास’ बल जाय ll 2 ll



साज – आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.



वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी गुलाबी रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.



श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना तथा सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. हीरे की हमेल धरायी जाती है.


श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, तथा गोल चमक की चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.


चैत्री गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.


श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.


पट गुलाबी और गोटी चांदी की आती हैं.



आज श्रीजी में चैत्री गुलाब की मंडली आती है. विश्व प्रसिद्द चैत्री गुलाब नाथद्वारा के निकट खमनोर गाँव में बहुतायत में पाये जाते हैं और इस पुष्प की यह विशेषता है कि ये केवल चैत्र मास में ही पल्लवित होते हैं. सामान्य गुलाब की तुलना में इसकी पत्तियां अधिक कोमल एवं इसकी सुगंध कई गुना अधिक होती है.



चैत्री गुलाब से निर्मित मंडली (बंगला) में श्रीजी विराजित होते हैं. राजभोग से संध्या-आरती तक प्रभु मंडली में विराजते हैं.



कीर्तन (राग : सारंग)



बैठे लाल फूलनकी चौखंडी l


चंपक बकुल गुलाब निवारो रायवेलि श्रीखंडी ll 1 ll


जाई जुई केवरो कूजो करण कनेर सुरंगी l



‘चतुर्भुजप्रभु’ गिरिधरनजूकी बानिक दिन दिन नवनवरंगी ll 2 ll

 
 
 

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