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व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी

Thursday, 26 may 2022


अपरा एकादशी व्रत


गुलाबी रंग का पिछोड़ा एवं टिपारा का साज के श्रृंगार

उत्थापन दर्शन पश्चात मोगरे की कली के श्रृंगार


जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.


ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर टिपारा का साज का शृंगार धराया जायेगा.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


गोविंद लाडिलो लडबोरा l

अपने रंग फिरत गोकुलमें श्यामवरण जैसे भोंरा ll 1 ll

किंकणी कणित चारू चल कुंडल तन चंदन की खोरा l

नृत्यत गावत वसन फिरावत हाथ फूलन के झोरा ll 2 ll

माथे कनक वरण को टिपारो ओढ़े पिछोरा l

‘परमानंद’ दास को जीवन संग दिठो नागोरा ll 3 ll


साज - आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज प्रभु को गुलाबी मलमल का पिछोड़ा धराया जाता हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (मोती की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में श्वेत रेशम की मोरशिखा तथा दोनों ओर श्वेत रेशम के दोहरा कतरा) धराये जाते हैं. बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी धरायी जाती है.

कली, तुलसी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट ऊष्णकाल का एवं गोटी बाघ बकरी की आती है.


आज शाम को मोगरे की कली के श्रृंगार धराये जायेंगे. इसमें प्रातः जैसे वस्त्र आभरण धराये जावें, संध्या-आरती में उसी प्रकार के मोगरे की कली से निर्मित अद्भुत वस्त्र और आभरण धराये जाते हैं.


उत्थापन दर्शन पश्चात प्रभु को कली के श्रृंगार धराये जाते हैं और शृंगार धराते ही भोग के दर्शन खोल दिए जाते और कली के शृंगार की भोग सामग्री संध्या-आरती में ली जाती हे.

संध्या-आरती के पश्चात ये सर्व श्रृंगार बड़े (हटा) कर शैया जी के पास पधराये जाते हैं. चार युथाधिपतियों के भाव से चार श्रृंगार – परधनी, आड़बंद, धोती एवं पिछोड़ा के धराये जाते हैं.

कली के श्रृंगार व्रजललनाओं के भाव से किये जाते हैं और इसमें ऐसा भाव है कि वन में व्रजललनाएं प्रभु को प्रेम से कली के श्रृंगार धराती हैं और प्रभु ये श्रृंगार धारण कर नंदालय में पधारते हैं.


 
 
 

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