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व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया

Thursday, 15 May 2025


श्वेत मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर केसरी गोल पाग पर तुर्रा के शृंगार,

उत्थापन दर्शन पश्चात मोगरे की कली का शृंगार


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


भलेई मेरे आये हो पिय

भलेई मेरे आये हो पिय ठीक दुपहरी की बिरियाँ l

शुभदिन शुभ नक्षत्र शुभ महूरत शुभपल छिन शुभ घरियाँ ll 1 ll

भयो है आनंद कंद मिट्यो विरह दुःख द्वंद चंदन घस अंगलेपन और पायन परियां l

'तानसेन' के प्रभु मया कीनी मों पर सुखी वेल करी हरियां ll 2 ll


साज - श्रीजी में आज श्वेत मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल की गोल छोर वाली रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित परधनी धरायी जाती है.


शृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.


श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.


श्रीकंठ में मोती का चोलड़ा धराया जाता हैं.

श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.


श्रीजी को कल ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया से आषाढ़ शुक्ल एकादशी तक प्रभु को मोगरे की कली के श्रृंगार धराये जाते हैं. इसमें प्रातः जैसे वस्त्र आभरण धराये जावें, संध्या-आरती में उसी प्रकार के मोगरे की कली से निर्मित अद्भुत वस्त्र और आभरण धराये जाते हैं.

इनमें कुछ श्रृंगार नियत (Fixed) हैं यद्यपि कुछ मनोरथी के द्वारा आयोजित होते हैं. इसके अतिरिक्त उसी दिन से खस के बंगला और मोगरे की कली और पुष्पों के बंगला के मनोरथ भी प्रारंभ हो जाते हैं.

उत्थापन दर्शन पश्चात प्रभु को कली के श्रृंगार धराये जाते हैं और शृंगार धराते ही भोग के दर्शन खोल दिए जाते और कली के शृंगार की भोग सामग्री संध्या-आरती में ली जाती हे.

संध्या-आरती के पश्चात ये सर्व श्रृंगार बड़े (हटा) कर शैया जी के पास पधराये जाते हैं. चार युथाधिपतियों के भाव से चार श्रृंगार – परधनी, आड़बंद, धोती एवं पिछोड़ा के धराये जाते हैं.

कली के श्रृंगार व्रजललनाओं के भाव से किये जाते हैं और इसमें ऐसा भाव है कि वन में व्रजललनाएं प्रभु को प्रेम से कली के श्रृंगार धराती हैं और प्रभु ये श्रृंगार धारण कर नंदालय में पधारते हैं.

इसमें प्रभु श्रमित होवें इस भाव से अधिक ग्रीष्म हों तब कली के श्रृंगार के अगले दिन प्रभु को अभ्यंग कराया जाता है.

ऊष्णकाल में नियम के चार अभ्यंग होते हैं.



आज संध्या-आरती में श्रीजी को कली का श्रृंगार धराया जायेगा.

 
 
 

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