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व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण दशमी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण दशमी

Wednesday, 25 May 2022


यमुना दशमी


विशेष - आज यमुना दशमी है. यमुनाजी के भाव का उत्सव होने के कारण आज आरती दो समय की थाली में की जाती है.


वस्त्रों में प्रभु को नियम से श्वेत मलमल का आड़बंद और श्रीमस्तक पर श्वेत मलमल का श्याम झाईं वाला फेंटा धराये जाते हैं. आज प्रभु को जाली वाला तानिया धराया जाता है व पिछवाई दूधिया घांस-फूस की आती है.


श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में सतुवा के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

राजभोग की सखड़ी में खंडरा प्रकार अरोगाये जाते हैं.


खंडरा प्रकार प्रसिद्द गुजराती व्यंजन खांडवी का ही रूप है. इसे सिद्ध करने की प्रक्रिया व बहुत हद तक उससे प्रेरित है, केवल खंडरा सिद्ध कर उन्हें घी में तला जाता है फिर अलग से घी में हींग-जीरा का छौंक लगाकर खांड का रस पधराया जाता है और तले खंडरा उसमें पधराकर थोडा नमक डाला जाता है. प्रभु सेवा में इस सामग्री को खंडरा की कढ़ी कहा जाता है और यह सामग्री वर्ष में कई बार बड़े उत्सवों पर व विशेषकर अन्नकूट पर अरोगायी


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


पनिया न जेहोरी आली नंदनंदन मेरी मटुकी झटकिके पटकी l

ठीक दुपहरीमें अटकी कुंजनमें कोऊ न जाने मेरे घटकी ll 1 ll

कहारी करो कछु बस नहि मेरो नागर नटसों अटकी l

‘नंददास’ प्रभुकी छबि निरखत सुधि न रही पनघटकी ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में दूधिया रंग की घास फूस की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को जालीदार तनिया एवं श्वेत मलमल का आड़बंद धराया जाता है.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

सर्व आभरण मोती के धराये जाते हैं. पौंची आदि लड़ की धरायी जाती है.

श्रीमस्तक पर श्वेत मलमल की श्याम झाईं के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख के दोहरा कतरा (खंडेला) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ श्वेत पुष्पों की दो मालाएँ हमेल की भांति धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, गंगा-जमुनी (सोने-चांदी) के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट ऊष्णकाल का व गोटी बड़ी हकीक की आती है.


यमुना दशमी


राजभोग दर्शन पश्चात मणिकोठा और डोल-तिबारी में घुटनों तक जल भरा जाता है.

डोल तिबारी की सभी दिशाओं में कुंज के भाव से केले के स्तम्भ खड़े किये जाते हैं.

प्रभु के सम्मुख रुई की बतखें रखी जाती है वहीँ लकड़ी के खिलौना (मगरमच्छ, कछुआ रुई की बतखें आदि) जल में तैराये जाते हैं. सुन्दर कमल और अन्य पुष्प भी जल में तैराये जाते हैं.

डोल-तिबारी में ध्रुव-बारी के छोर पर नीचे की ओर चांदी का सिंहासन और यमुनाजी के घाट के भाव से चार सीढियाँ भी साजी जाती हैं.


पनघट और जल-विहार के पद गाये जाते हैं.


उत्थापन समय उत्सव भोग में प्रभु को रत्नागिरी हापुस आम की चांदी की डबरिया और शाककेरी (हापुस आम की छिलके बगैर की फांक) की डबरिया अरोगायी जाती है.


आज से प्रतिदिन भोग समय प्रभु के सम्मुख रखे जाने वाले खिलौना के थाल (जिसे यमुनाजी का थाल भी कहा जाता है) में रुई की बतख भी तैराई जाती है.


उत्थापन के दर्शन नहीं खोले जाते और भोग समय सर्व-सज्जा हटाकर डोल-तिबारी का जल छोड़ दिया जाता है.

वैष्णव जल में ही खड़े हो कर दर्शनों का आनंद लेते हैं.

मणिकोठा का जल संध्या-आरती के पश्चात छोड़ा जाता है.


पुष्टिमार्ग में प्रभु के सुख के लिए बहुत छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखा जाता है. आज की अद्भुत विशेषता यह है कि ऊष्णता की अधिकता के चलते आज यमुना दशमी के दिन राजभोग व संध्या-आरती में प्रभु की आरती मणिकोठा में भरे जल में खड़े हो कर की जाती है.

सामान्यतया प्रभु की आरती निज मंदिर में ही होती है.


प्रभु सुखार्थ कितना सूक्ष्म भाव है कि आरती की लौ से भी प्रभु को गर्मी का अनुभव होगा.


शीतकाल में आरती में जहाँ 16 तक बत्तियां होती हैं वहीँ ऋतु अनुसार उनमें परिवर्तन होकर इन दिनों प्रभु की आरती में केवल 4 बत्तियां ही होती है.


सभी वैष्णवों को यमुना दशमी की ख़ूबख़ूब बधाई

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