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व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी

Saturday, 24 May 2025


पीत पिछोड़ी का श्रृंगार (पद के भाव का श्रृंगार)


विशेष – आज भी श्रीजी को एक विशिष्ट श्रृंगार धराया जायेगा. इस विशिष्ट श्रृंगार को ‘पीत पिछोड़ी’ का श्रृंगार कहा जाता है.


ज्येष्ठ मास में यह श्रृंगार होना निश्चित है परन्तु इसकी तिथी नियत नहीं है और आज खाली दिन होने के कारण यह श्रृंगार धराया जायेगा.


इस लीला के अनुसंधान मे आज श्रृंगार दर्शन में केसरी पटका व उत्थापन दर्शन में गुलाबी पटका धराया जाता है.


इस लीला का सुंदर पद 'पीत पिछोड़ी कहाँ जु बिसारी...' भी आज भोग दर्शन में प्रभु समक्ष गाया जाता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


करत जल केलि पिय प्यारी भुज मेलि l

छुटत फूहारे भारी उज्जवल हो दस बारे अत्तरही सुगंधि रेलि ll 1 ll

निरख व्रजनारी कहा कहौ छबि वारी सखा सहत सहेलि l

राधा-गोविंद जल मध्य क्रीड़त ख्याल वृंदावन सखी सब टहेलि ll 2 l।


साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग की मलमल की बिना किनारी की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद रंग की मलमल की बिना किनारी की धोती एवं केसरी (चंदनिया) रंग का राजशाही पटका धराया जाता है.

राजशाही पटका रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर श्वेत गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं इसी प्रकार श्वेत पुष्पों और तुलसी की दो मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, झीनें लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.


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पट ऊष्णकाल का व गोटी हकीक की आती है.

 
 
 

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