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व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी

Tuesday, 03 June 2025


ज्येष्ठ मास तपत घाम एसेमें कहां सीधारे श्याम एसी कोन चतुर नार जाको बीरा लीनो हे।।

नेकधों कृपा कीजे हमहूको सुज दीजे जैये फेरि वाके धाम जाको नेह नवीनो हे।।1।।

बाँह पकरि भवन लाई सैया पर दिये बैठाई अरगजा अंग लगाई हियो सीतल कीनो है।।

रसिक प्रीतम कंठ लगाय रसमें रस सो मिलाय अरसपरस केल करत प्रीतम बस कीनो है।।2।।


राजभोग में चंदन की गोली का मनोरथ


आज प्रभु के श्रीअंगों (वक्षस्थल, दोनों श्रीहस्त और दोनों चरणकमल) में कुल पांच केशर बरास मिश्रित चंदन की गोलियां धरायी जाती है.

श्रीजी में प्रतिदिन अथवा नियम से चंदन नहीं धराया जाता अपितु मनोरथियों द्वारा आयोजित चंदन धराने के मनोरथ होते हैं और मनोरथ के रूप में ऋतु के अनुरूप विविध सामग्रियां भी अरोगायी जाती हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


सखी सुगंध जल घोरके चंदन हरि अंग लगावत l

वदन कमल अलके मधुपनसी टेढ़ी पाग मनभावन ll 1 ll

कोऊ बिंजना कुसुमन के ढोरत कुसुम भूषन ले ले पहेरावत l

मृदुवेली सायंतर क्रीड़त ‘व्रजाधीश’ गुन गावत ll 2 ll


साज - आज श्रीजी में केसरी मलमल की, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के पतले हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.

गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी मलमल का बिना किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच,तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ दो अन्य मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती है.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट ऊष्णकाल का गोटी हक़ीक की छोटी धरायी जाती है.


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श्रीअंग (वक्षस्थल पर, दोनों श्रीहस्त में और दोनों चरणारविन्द) में चंदन की गोलियां धरायी जाती हैं.

 
 
 

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